- हम लगा रहे सिर्फ जयकारा,बज रहे नगाड़ा
- क्या जीवन का मकसद से पैसा है
- प्रभात कुमार
यह जहर का युग है। जिसका सबसे बड़ा साधन मीडिया है। जो हमारे रग रग में विभिन्न माध्यमों से जहर का संचार कर रहा है। हम कहां खड़े हैं। हम खुद के बारे में खुद ही नहीं जान रहे। यह जीवन इतना अनमोल है। फिर भी उसके मूल्य से हम अवगत नहीं। जहर खा रहे हैं। जहर पी रहे हैं। जहर के बीच सांस ले रहे हैं। प्रदूषण का विभिन्न रूप हमारे शरीर को खोखला करता जा रहा है। प्रदूषण इनफेक्शियस डिजीज का सबसे बड़ा कारण है। हमारी बीमारी का सबसे बड़ा कारण इंफेक्शन है। हाल में ही कोरोना ने यह साबित कर दिखा दिया कि कोई इंफेक्शन इस पूरी दुनिया को किस तरह से तंग- तबाह कर सकती है।
देश दुनिया में तरह-तरह के जहर भरे हैं। कहीं जाति का जहर है तो कहीं संप्रदाय का। कहीं भाषा तो कहीं रंगभेद। यह आज भी है। अशिक्षा भी एक बड़ा जहर है, जो आज भी मौजूद है। भारत के साक्षरता का दर जो भी हो गया हो, लेकिन शिक्षा की हालत किसी से छिपी नहीं है। यह सच है कि शिक्षा की दुकानदारी अच्छी हो गई है। यह भी चिकित्सा की तरह आय का एक अच्छा जरिया हो गया। सरकारी शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को लगातार रसातल में पहुंचने का काम जारी है। सरकार चाहे जिसकी भी हो शिक्षित नागरिक उसकी प्राथमिकता नहीं।
हालात हर क्षेत्र की यही है कि हम अपनी बीमारी को नहीं जान पा रहे हैं। सिर्फ इलाज के नाम पर शोषित हो रहे हैं। डॉक्टर के पीछे भाग रहे हैं। उनकी जेब गर्म कर रहे हैं। मर्ज यथावत बना हुआ है।
हम बीमार होते हैं। डॉक्टर के पास जाते हैं। सरकारी हॉस्पिटलों में या तो बड़ी भीड़ है यह सही ढंग से इलाज होने का संतोष नहीं हो पाने के कारण भय है। बिहार में अगर किसी पीएससी में चले जाइए, तो वहां पोस्टेड एलोपैथी के डॉक्टर अपने नर्सिंग होम में मिलेंगे। छुट्टी में होंगे या उनका कहीं डेपुटेशन हो गया होगा। उनकी जगह कोई आयुष डॉक्टर बैठा होगा। सदर अस्पताल और चिकित्सा महाविद्यालय में भी अब ईमानदार चिकित्सकों की बड़ी कमी हो गई है। जो है उन पर इतना अधिक बोझ है कि वह ईमानदारी से काम नहीं कर पाते। हमारे देश की आबादी भी एक बड़ी समस्या है। भीड़ का बड़ा कारण है। निजी अस्पतालों और निजी क्लिनिको में क्या हो रहा है। आप और हम अच्छी तरह से जानते हैं। बीमार आदमी एक शोध का ग्रंथ बनकर रह गया है। यही हमारे देश की चिकित्सा व्यवस्था है। हमारी सरकार की सच्चाई है। यही भारत के नामचीन राजनेताओं के उपलब्धि का एक बड़ा हिस्सा है।
दरअसल हम जो खा रहे हैं। उसमें कितना पेस्टिसाइड और कितना केमिकल फर्टिलाइजर है। अन्न को बचाने के लिए किसान, दुकानदार और गोदाम मालिक किस तरह के घातक और जानलेवा जहर का प्रयोग करते हैं। यह कौन नहीं जान रहा और यह कौन नहीं कर रहा है। वायु प्रदूषण की हालत से कौन नहीं अवगत है। ऑक्सीजन का लेवल और हवा में जहर के बारे में जरा सोचिए। हवा में उड़ रहे जहर के बारे में सोचिए। जहर उगलते वाहनों को देखिए। सड़क पर जमा कड़ा- कचरा और मेडिकल वेस्ट
व केमिकल अपशिष्ट को देखिए। यह बीमारी का वाहक नहीं है तो क्या है। पानी की वही हालत है। नाला और पीने का पानी एक साथ जुड़ा है। पानी से कीड़े आ रहे हैं गंदगी आ रही है। यह बीमारी का वाहक नहीं है तो क्या है। साउंड पॉल्यूशन की हालत देख लीजिए। यह डीजे वाले गांव- गांव में जिस तरह से उत्पात मचा रखा है। इसका दर्द किसी दिल के मरीज से पूछे। महिलाएं,बच्चे और नौजवान जिस तरह उसके साथ मगन होकर नाच रहे हैं। क्या बीमारी को नहीं बुला रहे। वाहनों के होर्न की हालत देख ले। एंबुलेंस में लगे तरह-तरह के साउंड को देखें। क्या अपने कान को बीमार नहीं कर रहे। आपका मस्तिष्क बीमार नहीं हो रहा। बातें तो बहुत है। काम लिखना बहुत समझना। कुछ उदाहरण से भी संभव है। हमारा पूरा जीवन नर्क बनता जा रहा है। अब तो बाजार में कैंसर की भी दवा नकली बिक रही है।
हालात को अगर देखें तो कहां हमारे शासन के अधिकारी हैं और कहां हमारे जनप्रतिनिधि। एक समय था जब हमारे राजनेता की प्राथमिकता होती थी कि उनके क्षेत्र में एक अच्छा सरकारी स्कूल और अस्पताल खुल जाए। जीवन की बड़ी उपलब्धि मानते थे। आज हमारे एमएलए और एमपी साहब की न्यूनतम इच्छा है कि एक उनका अच्छा प्राइवेट स्कूल और प्राइवेट नर्सिंग होम हो। अगर अपनी निजी मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी हो जाए तो जनप्रतिनिधि होने का असली मकसद पूरा हो जाए। चार पांच बाइक और ऑटो वाहनों की एजेंसी हो। एक दो कारखाने खुल जाए तो सोने पर सुहागा। आज बिहार में हर कोई जो पैसे के लिए पागल है। उसके पास सबसे आसान विकल्प अवैध जमीन और नशे का कारोबार है। आज गरीब का भी बच्चा बाइक, जींस और जूते पहनकर टाइट है एक ईमानदार आदमी इसका शिकार होकर दर-दर भटक रहा है।
फिर भी राजनीति में न इसकी चर्चा है और कोई विचार मंथन के लिए जगह ही बची है।सिर्फ हर- हर और घर-घर की बात कर रहे हैं। सत्ता के लिए न्याय यात्रा जारी है। वाम और समाजवादी पार्टियों भी आम सवाल को भूल चुका है। मीडिया के लिए भी यह सवाल चिंतन का नहीं रह गया है। कारण, मीडिया विचारों की थाती नहीं। कॉरपोरेट बिजनेस का एक हिस्सा है। हर कोई है डॉक्टर। हर कोई है वैद्य। गूगल से बड़ा कोई ज्ञानी नहीं। सोशल मीडिया है सभी सवालों का जवाब। गांव गांव में माइक और मोबाइल के सहारे बन गए हैं पत्रकार। फिर भी हम कहां खड़े हैं पता नहीं। हम क्यों बीमार हैं। बीमारी का कारण मालूम नहीं।

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