- 10 साल में 100 पेंशनर, फिर भी सुधार पर विचार नहीं
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार |
बिहार में पत्रकार सम्मान पेंशन के लिए जो शर्तें तैयार किया गया है। उसके आधार पर इस राज्य के नामचीन पत्रकार सुरेंद्र किशोर जी को पद्मश्री जरूर मिल गया लेकिन वह इस पेंशन से वंचित हैं। इस राज्य के काफी चर्चित और ख्याति प्राप्त कवि लेखक नागार्जुन के पुत्र सुकांत जी की मृत्यु हो गई लेकिन उन्हें यह पेंशन इसलिए नहीं मिल सका कि 20 वर्षों का सेवा काल और राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार होने के साथ-साथ पीएफ का प्रमाण पत्र वह नहीं उपलब्ध करा सके। उनकी पत्नी अभी भी इस पेंशन की राशि से वंचित है। नवभारत टाइम्स के संपादक स्वर्गीय अरुण रंजन जी का भी यही हाल रहा। उनका भी देहांत हाल में ही हुआ। ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण हैं।
पत्रकारों के बारे में जानने के लिए थोड़ा बिहार के पत्रकारिता को पांच दशक पीछे जाकर देखना होगा। एक समय बिहार में आर्यावर्त और इंडियन नेशन, प्रदीप और सर्च लाइट का जमाना था। सर्च लाइट प्रेस में 74 के छात्र आंदोलन के दौरान आग लगा दिए जाने के कारण यह दोनों अखबार कालान्तर में बंद हो गए। आर्यावर्त और इंडियन नेशन की भी हालत बिगड़ने के कारण वह भी अंततः बंद हो गया। इसके बाद जनता सरकार देश में आई और बिहार में आज अखबार का उदय हुआ। उसकी भी हालत छिपी हुई नहीं है। बस अखबार छाप रहा है। नवभारत टाइम्स और टाइम्स ऑफ़ इंडिया भी पटना आया लेकिन कुछ दिनों के बाद बंद हो गया। इसके कारण बहुत सारे पत्रकार जो स्टाफ रिपोर्टर के रूप में बहस भी हुए वह सड़क पर आ गए। अपने हक के लिए प्रबंधन से अभी भी लड़ाई लड़ रहे हैं।
अब रही बात हिंदुस्तान और हिंदुस्तान टाइम्स की। पटना को छोड़कर इस अखबार के भी दो-चार लोग पूरे राज्य में 20 साल नौकरी करने वाले संभव हैं। दोनों अखबार में भी बहुत सारे पत्रकारों को स्ट्रिंगर और सुपर स्ट्रिंगर के रूप में स्टाफ रिपोर्टर का दर्जा मिला। अखबार से समय-समय पर आर्थिक कारणों और कोरोना के कारण जिस तरह पत्रकारों हुई। उसके कारण बड़ी संख्या में इस राज्य के विभिन्न जिले और कोने में कार्यरत पत्रकार सरकार द्वारा निर्धारित मापदंड के दायरे में नहीं आता है। जिसके कारण इस पत्रकार सम्मान पेंशन से वंचित है। वैसे पत्रकारों का शोषण प्रबंधन के द्वारा जितना होता है। शायद ऐसी स्थिति किसी अन्य क्षेत्र में नहीं। मालूम हो कि पत्रकारों को प्रबंधन की तरफ से नौकरी के दावे के भय से एक पत्र और आई कार्ड तक नहीं दिया जाता है। जो राशि मानदेय या प्रति खबर के दर से दिया जाता है। उसका पहले तो कोई परिमाण संभव नहीं था। आज की तारीख में भी जिस रूप में दिया जाता है। उसे पत्रकार का वेतन या या मानदेय का प्रमाण पत्र माना नहीं जा सकता। इतना ही नहीं सरकार चाहे तो अपने श्रम विभाग से किसी भी अखबार में जांच कर लें। उसे जानकारी हो जाएगी की श्रम विभाग के नियम और कानून से बचने के लिए एक अखबार के भीतर कई एजेंसी काम कर रही है। मजे की बात यह है कि इस एजेंसी के आधार पर कोई कर्मचारी किसी अखबार के कर्मचारी अधिकारी होने का दावा भी नहीं कर सकता है। अखबार में पत्रकारों के लिए बने आयोग की रिपोर्ट के बाद प्रधान संपादक तक कांट्रेक्चुअल सर्विस के रूप में कार्यरत है।
ऐसी स्थिति में पत्रकारों से जो राज्य सरकार ने मापदंड तय किया है। उसके आधार पर किसी भी पत्रकार को पद्मश्री से लेकर भारत रत्न दे सकती है लेकिन अधिकारियों ने जो पत्रकार सम्मान पेंशन के लिए जो पात्रता निर्धारित किया है। वह उसके आधार पर उसे नहीं दे सकती है। इसके कारण कई लोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस पत्रकार कल्याण पेंशन की हसरत को लेकर स्वर्ग सिधार गए लेकिन यह पेंशन उनके लिए संभव नहीं हो सका। ऐसी स्थिति में सरकार अनुभव के मापदंड को 20 साल रहने दे लेकिन स्टाफ रिपोर्टर और पीएफ के मानक को 20 साल से घटकर 10 साल कर दे, तो निश्चित तौर पर इस पेंशन का सही सम्मान पत्रकारों के लिए हो सकेगा।
प्रभात कुमार
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