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धोती सत्याग्रह और मेरे पिता

मजदूर नेता सहदेव राम की 38 वीं पुण्यतिथि । 

5 नवंबर 1987 को हुई थी मृत्यु...

स्वर्गीय सहदेव राम ( फाइल फोटो )
आज गुरु नानक जयंती है और कार्तिक पूर्णिमा भी है। साथ ही 5 नवंबर भी है। इस तारीख का मेरे जीवन में एक बड़ा महत्व रहा लेकिन मैं अपने पिता की पुण्यतिथि कभी भी नहीं मना सका। यह तारीख मेरे जेहन में ही बनी रही और 38 साल गुजर गए। मैं उनके जीवन में ही पत्रकारिता से जुड़ने का प्रयास शुरू कर दिया था और आज पेशे रिटायर हो चुका हूं। मुझे यह उम्मीद भी नहीं थी कि मैं हिंदुस्तान जैसे अखबार का पत्रकार बना सकूंगा। संभवतः यह बात मेरे जीवन में पिता की ही तरह था, जो अंग्रेज के जमाने में पोस्ट ऑफिस में बहाल हुए थे। एक क्लर्क के रूप में जिंदगी की शुरुआत की थी और सीनियर पोस्ट मास्टर के रूप में उन्होंने रिटायरमेंट लिया। 
मालूम हो कि अंग्रेजों के जमाने में पोस्ट मास्टर अंग्रेज ही हुआ करते थे।एक दिन मेरे पिता ने बताया था कि मुझे पोस्ट मास्टर की कुर्सी पर बैठने की जीवन में बड़ी चाहत है। अंग्रेज के जमाने में पोस्टमास्टर की कुर्सी जज की तरह चौकी के ऊपर और लाल कपड़े की घेरे में होती थी। इस पद का अपना रुतबा था। इसका जिक्र महाकवि रविंद्रनाथ टैगोर ने भी अपने साहित्य में किया है। 
मुझे याद है कि जब मैं मात्र 12 साल का था, तब मेरे पिता को यह अवसर पहली बार मुजफ्फरपुर प्रधान डाकघर में मिला। वह उसी कुर्सी पर बैठे जिस पर अंग्रेज पोस्ट मास्टर बैठता था। संजोग था कि मैं उस समय डाकखाना में ही मौजूद था और यह क्षण मुझे भी देखने को मिला। पिताजी को यूनियन के नेताओं और कर्मचारियों ने माला से लाद दिया था। कर्मचारियों बीच खुशी कारण के नेता का इस कुर्सी पर बैठना था लेकिन उनकी आंखों से जो आंसू के बूंद मेज पर टपक रहे थे। मैंने उसे देख लिया था लेकिन उन्होंने इसे बहुत अपनी धोती से साफ कर दिया था। कर्मचारियों को ऐसा लगा कि उनके नेता इस कुर्सी पर बैठे। उसी खुशी के आंसू यह रहा होगा लेकिन बाद में पता चला कि पिताजी ने जिसकी उम्मीद उन्होंने नहीं की थी। उस क्षण को पाकर वह भावविभोर थे। उन्होंने बताया कि इस कुर्सी पर बैठना तो दूर रहा अंग्रेजों के जमाने में कोई पोस्ट मास्टर के आगे खड़ा भी नहीं हो सकता था। अगर किसी कारण से खराबी होता तो उसकी नजर जमीन पर ही होनी थी। 
जिस दिन मेरे पिता पहली बार पोस्ट मास्टर की कुर्सी पर बैठे थे। उसी दिन मुजफ्फरपुर प्रधान डाकघर के मेरे पिता के शिष्य रहे एक मजदूर नेता रघुवीर सिंह ने बताया था कि तुम लोग अपने पिता को क्या जानते हो। यह वह शख्स है जो अंग्रेजों के जमाने में अपने सत्याग्रह से सरकार को झुकाया था। मैंने पूछा ऐसा उन्होंने क्या किया था। बताया कि 1942 में मुजफ्फरपुर हेड पोस्ट ऑफिस में तुम्हारे पिता ने कराके के ठंड में सिर्फ धोती पहनकर 20 दिनों तक इस कैंपस में मजदूरों के मांग के लिए धरना दिया था। आंदोलन को आजादी के बाद धोती आंदोलन और धोती सत्याग्रह के नाम से जाना गया। वह अगर पिछड़ा कुल में नहीं पैदा हुए होते तो उनकी आदमकद प्रतिमा इस कैंपस में होती।
मेरे पिता सहदेव राम कुर्मी परिवार में 15 मई 1917 को एक किसान परिवार में पैदा हुए थे। अपने गांव में पिछड़ा समाज से मैट्रिक प्रथम श्रेणी में कोलकाता विश्वविद्यालय से पास करने वाले दूसरे व्यक्ति थे। उनसे 5 साल पहले उनके बड़े भाई महादेव राम ने द्वितीय श्रेणी से मैट्रिक पास किया था। दोनों डाकघर के ही नौकरी में थे। मेरे दादा भी डाकघर में ही ओवरसीज थे।
मेरे पिता पर शुरू से गांधी युग और स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव था। मेरे गांव में जमींदारी के खिलाफ आंदोलन के कारण 1945 में ही जमींदार गांव छोड़कर चले गए। इस आंदोलन में परिवार बड़ी आर्थिक स्थिति हुई। नौकरी में आने के बाद भी वह मजदूर आंदोलन से जुड़ गए। 1960 में जननायक कर्पूरी ठाकुर जब डाक कर्मचारियों के बिहार प्रदेश के अध्यक्ष से अलग हुए तो वह पहली बार उनकी जगह अध्यक्ष बने। सरकार द्वारा केंद्र सरकार के यूनियन में कर्मचारी को छोड़कर किसी बाहरी को यूनियन का पदाधिकारी बनने पर लगी रोक के बाद यह परिवर्तन हुआ। वह कर्पूरी ठाकुर के एक अच्छे मित्रों में रहे और समस्तीपुर जिले के तमाम मजदूर यूनियनों के महासंघ के वह संयोजक भी रहे। उनके नेतृत्व में 1974 का हड़ताल ऐतिहासिक रहा। इस दौरान वह रेलवे मजदूर यूनियन के नेता जॉर्ज फर्नांडिस के भी करीब आए। वह राष्ट्रीय स्तर पर भी मजदूर यूनियन के पदाधिकारी रहे। उनके जीवन में बचपन से ही लंबा संघर्ष रहा और वह बेहद क्रांतिकारी स्वभाव के थे। एक बार उन्होंने बताया था कि जब वह स्कूल में किशनगंज में पढ़ रहे थे तब एक मास्टर ने उन्हें सिगरेट नहीं लाने के लिए पिटाई कर दी तब वह अंग्रेज स्कूल इंस्पेक्टर से अपनी पिटाई की शिकायत कर दी। वह एक अच्छे नाटक के कलाकार होने के साथ-साथ वह धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति थे।

प्रभात कुमार
संपादक लोकवार्ता न्यूज 

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