- बिहार में हो सकता है एक ही चरण में चुनाव
* प्रभात कुमार
बिहार में बीजेपी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 2025 के चुनाव में एक ही शॉट में आउट कर देना चाहती है। यह सुनकर भले ही अटपटा लगे। मैं नहीं बता सकता की वह बोल्ड होंगे या कैच आउट अथवा एलबीडब्ल्यू। ऐसी की चर्चा है कि बिहार में विधानसभा का चुनाव होगा। इसका उद्देश्य मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वोट को एक ही चरण में गोलबंद करना है। एक चरण में चुनाव होने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस चुनाव में अपना स्टैंड चेंज करने का मौका नहीं मिलेगा। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को चुनाव प्रचार का मौका सीमित हो जाएगा। भारतीय जनता पार्टी के लिए नए स्टार प्रचारकों की कमी है और ना संसाधन की। ऐसे में बल्ले- बल्ले रहेगी।
यह बात लोगों के समझ में आए या ना आए यह संभावना से पड़ी नहीं है। जहां तक बिहार में जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शैडो सरकार चल रही है। जनता भी इस संचार क्रांति के युग में वही नहीं समझ रही जो जो भाजपा और संघ परिवार समझने की कोशिश कर रही है। उसे उसे लोग जनशक्ति पार्टी के सुप्रीमो चिराग पासवान की भाषा भी समझ में आ रही है और वह हम पार्टी के संस्थापक जीतन राम मांझी के चाल को भी समझ रही है।इस मामले में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी हो या प्रशांत किशोर की इन सभी का कुल मकसद पिछड़ी,अति पिछड़ी, दलित,महादलित और अकलियत से आने वाले लोगों को असली एजेंडा समझ में आ रहा है। बोले या ना बोले ये लोग यह बात अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि भाजपा राज लाओ नारे के पीछे का क्या सच है।
अभी 3 दिन पहले जब पूरी दुनिया और पूरा देश शोक में डूबा हुआ था, तब दिल्ली में बिहार के सवर्ण आयोग के अध्यक्ष बनने के उपलक्ष में पूर्व विधान पार्षद महाचंद्र प्रसाद सिंह यह दिल्ली स्थित आवास पर न सिर्फ जश्न जारी था, बल्कि जिस तरह से आतिशबाजी और स्वागत का दौर जारी था। उसे देखने के बाद दिल्ली के एक मित्र ने मुझे फोन पर बताया। अगर ट्रेलर ऐसा है तो अंजाम कैसा होगा। सवर्ण आयोग के अध्यक्ष बनने पर ऐसा जश्न है तो सरकार बनने पर क्या स्थिति होगी? इस मौके पर महाचंद्र बाबू ने जो कहा-जिन शब्दों में उद्गार व्यक्त किया। वह उनका उद्धार सवर्ण समाज को मिले उनके हक और संविधान संशोधन के कारण हो सका। उन्होंने यह बात खुलकर कही।
जिस तरह से भाजपा का रेड ब्रिगेड सवर्ण राज की बात करता है। यह बातें अब ऐसी बात नहीं कि पिछड़ा समाज नहीं समझता है। यह भी सबको मालूम है कि मुख्यमंत्री कितना अब समझते हैं और कितना नहीं समझते। वह कितना दया के पात्र हैं और कितना आक्रोश के पात्र हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वोट बैंक को लेकर मोदी और काफी सकते में हैं। वह इस वोट बैंक को पाने के लिए किसी भी कोशिश से चूक नहीं रहे। वह मुंह में राम और बगल में छुरी के रास्ते पर चल रही है।
जहां तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से व्यक्तिगत मामलों को लेकर शिकायत का सवाल है। मैं या अन्य कोई को भी हो सकता है। फिर भी बिहार के विकास को लेकर कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर ऊंगली उठाने की स्थिति में शायद ही हो। यह सच है कि सड़क बिजली पानी के साथ-साथ कई चीजे बिहार में अब समस्या नहीं रह गई लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन के 20 वर्षों में भी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो सका। इसके हालत में बदलाव जरूर हुई लेकिन निजी शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाएं जिस तरह से सरकारी के सामने भारी बनी रही। यह एक बड़ा सवाल जरूर है।
सच तो यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जो लोग नाराज हैं। वही उनके आज भी सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। संघर्ष के साथी और हितैषी हैं, जो लोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराज हैं। उनके नाराजगी का कारण भी है और उनको नाराज होने का हक भी है। कारण यह है कि वर्तमान में केंद्रीय मंत्री ललन सिंह को छोड़कर न विजय चौधरी, न अशोक चौधरी और न संजय झा, अगर इस श्रेणी में रामचंद्र प्रसाद सिंह और मनीष वर्मा जी को भी रखा जाए। तो शायद कोई गलत नहीं होगा। जहां तक सवाल प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा और बहुत सारे नेता का है। उनके कुर्ते की सफेदी हो या फॉर्च्यूनर की। इसमें संघर्ष के साथियों की तरह किसी का खून और पसीना नहीं लगा हुआ है। ऐसे में उन्हें बोलने का हक नहीं। बोलने का हक तो हमारा ही रहेगा।
आज बहुत सारे पुराने लोग जिसमें जहानाबाद के पूर्व सांसद डॉ. अरुण कुमार जैसे अनेक साथी आज भी मौजूद है। जो भले ही राजनीति में हसिए पर डाल दिए गए हो लेकिन उनके संघर्षों के कारण ही जनता दल यूनाइटेड बिहार में सत्ता पर काबिज हो सकी। अगर बिहार में परिवर्तन हुआ तो उसका असली नायक समाजवादी नेता पूर्व के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज थे। यह बात उमेश कुशवाहा, संजय गांधी, ललन सर्राफ जैसे नेताओं को क्या मालूम?
(लेखक प्रभात कुमार हिंदुस्तान हिंदी दैनिक के सीनियर रिपोर्टर रहे हैं)
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