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बिहार में नीतीश हटाओ, भाजपा लाओ?

- सरकार का रिमोट, सीएम के हाथ में नहीं 

- मोदी- शाह दिल्ली से चला रहे सरकार 

- भाजपा से मोहभंग हो रहा पिछड़ों-अतिपिछड़ों का 

- दलित व अकलियत भी हो रहे दूर 

बिहार में नीतीश हटाओ, भाजपा लाओ?

* प्रभात कुमार

2020 के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेहद कमजोर और लाचार मुख्यमंत्री के रूप में सरकार चलाते दिखे। वह भाजपा और जनता दल यूनाइटेड में भाजपा के स्लीपर सेल के सामने नतमस्तक है। प्रधान सचिव दीपक कुमार और बिहार सरकार के वरिष्ठ मंत्री विजय चौधरी ने पूरी तरह से सरकार को कब्जे में लिया है। दिल्ली में पार्टी को केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष राज्यसभा सदस्य संजय झा संभाल रहे हैं। पार्टी में एक भी पिछड़ा नेता राज्य से लेकर केंद्र तक अपने समाज और वर्ग की रक्षा के लिए अपनी दलील रख सके। इस इस स्थिति में भी नहीं है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा को लेकर कुछ पार्टी नेता और कार्यकर्ता भले ही भ्रम में है लेकिन वह मुख्यमंत्री के समक्ष अपने समाज और वर्ग के हितों की बात को रख नहीं सकते। यह हालत तब है, जब बिहार में विधानसभा का चुनाव अब कुछ महीने ही दूर रह गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी कुर्सी पर बैठे हैं। उसकी मियाद अधिकतम 22 नवंबर है। इस हालात का प्रमाण कुछ दिन पहले धार्मिक न्यास बोर्ड, सवर्ण आयोग और कई आयोग के गठन और उसमें फेर-बदल से साफतौर पर जाहिर हो रहा है।  यही नहीं जदयू के प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार सिंह पार्टी में जिस तरह से पिछड़े,दलित और अकलियत को टारगेट कर रहे हैं। उससे साफ हो गया है कि अभी इस पार्टी में गरीब, कमजोर और पिछड़ा- अति पिछड़ा को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। बिहार में अब भाजपा के साथ सरकार जरूर चल रही लेकिन रिमोट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ में नहीं है। 

यही नहीं वर्तमान में जो हालात है। उसमें मंत्री, विधायक या सारे जो अधिकारी हैं। इनका एक ही लक्ष्य रहा कि मंत्री नीतीश कुमार को अंधेरे में रखकर अधिक से अधिक व्यक्तिगत इच्छा और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पत्रकार कन्हैया भेलारी यह शब्दों में अधिक से अधिक चॉकलेट का इंतजाम रहा। यही नहीं  नहीं बिहार में जो भी गठबंधन की सरकारें रही। उसका सबसे बड़ा पार्टनर या तो भाजपा रहा या आरजेडी। लिहाजा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब से शपथ ग्रहण 2020 में लिया तब से वह हमेशा दबाव में रहे। यही नहीं जब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजद के साथ बिहार में सरकार बनाई। जनता दल यूनाइटेड के भीतर बीजेपी का स्लीपर सेल हमेशा इस सरकार को तोड़ने के लिए साजिश रचता रहा। दूसरी बात दिया है कि यह है कि छोटे-छोटे दल इस गठबंधन में शामिल रहे। उनका भी असंतोष फूटता रहा। यही नहीं इन पांच सालों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के संगठन को दुरुस्त करने के लिए जिन लोगों को लगाया। उनकी भी इच्छा मंत्रियों की गाल की तरह और सेब की तरह लाल होने की बनी रही। जिसमें वह पार्टी की ताकत और मुख्यमंत्री की मजबूती तुलना में अधिक से अधिक चॉकलेट बटोरने की रही। चाहे वह कुछ वर्ष पहले संगठन के बदौलत मोच की कुर्सी पर पहुंचे हुए नेता हों या किसी आयोग के अध्यक्ष और सदस्य के रूप में सुशोभित संगठन के नेता रहे हों। कोषागार का मालिक बना हो या जब से नीतीश कुमार की बिहार में सरकार बनी तब से उनकी आंख बने विधान पार्षद और सदन के सचेतक रहे नेताओं हों। यह मैं नहीं कह रहा। यह आप जनता दल यूनाइटेड के निर्माण से लेकर अब तक पार्टी के वफादार नेता और कार्यकर्ताओं का है।

वैसे इस मामले में पार्टी में कुछ देता अपवाद हो इससे इनकार नहीं किया जा सकता। फिर भी कई ऐसे नेता हैं। जिनकी ईमानदारी पर तो उंगली नहीं उठाई जा सकती लेकिन उनके भी दरबार में कुछ लेमन चूस का इंतजाम करने लेने वाले नेता के होने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2020 में मात्र 43 सीट पाकर बिहार के विकास के लिए मुख्यमंत्री कुर्सी का जुगाड़ तो कर लिया लेकिन यह सिंहासन बेहद कांटों भरा रहा। इस कार्यकाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ी संख्या में उन्हें नीचा दिखाने और उनके लिए कांटें लगाने वाले नेताओं की भरमार रही। ऐसे नेता सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल और भारतीय जनता पार्टी में ही नहीं। उनकी पार्टी में भी देखे गए।

यह सारी परिस्थितियों बिहार में 2020 के के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के आशीर्वाद पर एक हनुमान के लंका दहन के कारण हुआ। फिर वही हनुमान एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के आशीर्वाद से 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विदाई कर अपने पिता और अपने साथ हुए तमाम राजनीतिक घटनाओं का प्रतिशोध लेने की तैयारी शुरू कर दी है।

बिहार में यह इसलिए संभव हो सका है कि 2020 के साथ कोरोना का आपदा और  उसे ग्रसित होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य में गिरावट और उन पर बढ़ा मानसिक दबाव के कारण उनके बीमार होना है। बिहार में जिस तरह की सरकार चल रही है और एक अणे मार्ग में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रधान सचिव के कुर्सी पर एक रिटायर अधिकारी बैठे हैं और वह जिस तरह से किसी के इशारे पर पूरे बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा को प्रवाहित कर रहे हैं। शायद यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वस्थ होने की स्थिति में संभव नहीं था। अभी भी बिहार की जनता को ऐसा नहीं लगता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार की गोद में बैठे हैं। यह आरोप भले ही कुछ देर के लिए स्वीकार किया जा सकता है कि वह कुर्सी के लिए समझौतावादी हो गए हैं। कुछ भी हो वह जिस तरह से 2020 के पहले बिहार में राजपाट का काम देख रहे थे और जो उनकी हनक सरकार और प्रशासन में थी। वह आज कदापि नहीं है। यह सच है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अधिकारी राज के लिए बिहार में बदनाम रहे। कार्यकर्ता नेता और मंत्री में इसके कारण असंतोष रहा। फिर भी वह कानून व्यवस्था और सुशासन को बनाए रखने की बिहार में कोशिश की। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। किसी भी राज्य में सुशासन और कानून व्यवस्था किसी एक व्यक्ति के बदौलत संभव नहीं है। हम जिस समय में जी रहे हैं। वहां जनता भी चुनाव में अपने एक वोट की कीमत और उसका दाम चाहता है। ऐसी स्थिति में एक विकट परिस्थिति तो है ही।

बिहार में यह इसलिए संभव हो सका है कि 2020 के साथ कोरोना का आपदा और  उसे ग्रसित होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य में गिरावट और उन पर बढ़ा मानसिक दबाव के कारण उनके बीमार होना है। बिहार में जिस तरह की सरकार चल रही है और एक अणे मार्ग में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रधान सचिव के कुर्सी पर एक रिटायर अधिकारी बैठे हैं और वह जिस तरह से किसी के इशारे पर पूरे बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा को प्रवाहित कर रहे हैं। शायद यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वस्थ होने की स्थिति में संभव नहीं था। अभी भी बिहार की जनता को ऐसा नहीं लगता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार की गोद में बैठे हैं। यह आरोप भले ही कुछ देर के लिए स्वीकार किया जा सकता है कि वह कुर्सी के लिए समझौतावादी हो गए हैं। कुछ भी हो वह जिस तरह से 2020 के पहले बिहार में राजपाट का काम देख रहे थे और जो उनकी हनक सरकार और प्रशासन में थी। वह आज कदापि नहीं है। यह सच है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अधिकारी राज के लिए बिहार में बदनाम रहे। कार्यकर्ता नेता और विधायकों में भी इसके कारण असंतोष रहा। फिर भी उन्होंने कानून व्यवस्था और सुशासन को बनाए रखने की बिहार में कोशिश की लेकिन जो वर्तमान में स्थिति है। जैसे-जैसे लोग राजनीति में हैं। फिलहाल फिलहाल इस परिस्थिति में सुशासन और कानून के राज्य की कल्पना अधूरी है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। किसी भी राज्य में सुशासन और कानून व्यवस्था किसी एक व्यक्ति के बदौलत संभव नहीं है। हम जिस समय में जी रहे हैं। वहां जनता भी चुनाव में अपने एक वोट की कीमत और उसका दाम चाहता है। ऐसी स्थिति में एक विकट परिस्थिति तो है ही।

अंत में मैं सिर्फ यही कहना चाहता हूं कि बिहार में दो बातें खास तौर पर चर्चा के बीच बनी हुई है। पहला बिहार में कोई भी सरकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता और जनता में पैठ को देखते हुए अचानक किसी दल के लिए कठिन दिख रहा है। उनकी मदद के बिना फिलहाल संभव नहीं दिखता। सिर्फ एक स्थिति में यह संभव है। जब बिहार में जिस तरह के आरोप ईवीएम मशीन को लेकर लगते रहे हैं। इस तरह से इस मशीन को लेकर आज भी महाराष्ट्र में संशय बना हुआ है।। उसकी बिहार में पुनरावृत्ति न हो। दूसरी बात यह है कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी का मुख्यमंत्री बिना चिराग मॉडल और बिना विश्वास घात के संभव नहीं है। यह कार्य सिर्फ जनता दल यूनाइटेड में मौजूद संगठन और सरकार दोनों में नेता के बदौलत भी संभव नहीं है। अगर बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या उनके पुत्र निशांत कुमार को भारतीय जनता पार्टी के इरादे और जनता दल यूनाइटेड में मौजूद भाजपा के स्लीपर सेल पर संदेह होता है तो चिराग मॉडल के बावजूद जनता दल यूनाइटेड के हिस्से 30- 35 सीट कम से कम है जो कुछ हो या ना हो तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के लिए काफी है। जो चिराग और भारतीय जनता पार्टी सत्ता से दूर रख सकती है। मोदी और शाह के बिहार में अपने मुख्यमंत्री के सपना पर ग्रहण लगा सकती है।

(लेखक प्रभात कुमार हिंदुस्तान अखबार के वरिष्ठ पत्रकार रह चुके हैं। वे फिलहाल लोकवार्ता न्यूज के संपादक हैं.)

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