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मुजफ्फरपुर को नहीं समझ सके नीतीश

- हरियाली और मछली प्रेम में डुबाया जिला 

- नहीं मालूम है मुजफ्फरपुर का राजनीतिक इतिहास पार्टी के  प्रदेश अध्यक्ष को 

मुजफ्फरपुर को नहीं समझ सके नीतीश

* प्रभात कुमार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्होंने कभी कृषि मंत्री के रूप में मुजफ्फरपुर जिला को राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र की सौगात देकर एक बड़ी उम्मीद जगाई थी। मुजफ्फरपुर में फूड पार्क की भी स्थापना होनी थी लेकिन वह आज तक अधूरा रहा। फूड पार्क के अभाव में लीची की मिठास किसानों के जेब तक नहीं पहुंच सकी। जब- जब लीची का मौसम आता है। मुजफ्फरपुर के लोगों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की याद आ ही जाती है। जो 20 वर्षों से इस बिहार में शासन के बावजूद मुजफ्फरपुर के लीची को दरभंगा के मखाना की तरह बाजार का रास्ता नहीं दिला सके। लीची की प्रोसेसिंग का कोई उपाय नहीं हो सका। इसके एक्सपोर्ट के लिए यह के किसान आज भी तरस भी रहे हैं। भले ही कुछ किसान और व्यापारी शोषण और दोहन कर मालो-माल हो रहे हैं।वही जनता दल यूनाइटेड है और और आज की तारीख में इसके सिर्फ एक विधायक हैं। यह सीट भी 2025 में कब्जे में बनी रहेगी। यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। खास तौर पर वर्तमान विधायक के अस्वस्थ होने और क्षेत्र से बाहर होने के साथ-साथ क्षेत्र में कार्यकर्ताओं के साथ बेहतर समन्वय नहीं होने के कारण रिस्क पर है। जैसी की चर्चा है। पिछले 2020 चुनाव में भाजपा और लोजपा के कारण पार्टी के प्रत्याशी मनोज कुमार की हार हुई थी। मालूम हो कि वैसे मनोज कुमार एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थे।

जिले में चार सीट में पर जनता दल यूनाइटेड 2020 में खड़ी हुई। जिसमें एक मीनापुर की सीट लोजपा के बाल चढ़ गई। कांटी विधानसभा क्षेत्र में लोजपा के कारण जनता दल यूनाइटेड के पूर्व प्रत्याशी और बतौर निर्दलीय उम्मीदवार अजीत कुमार चुनाव हार गए और यहां से राष्ट्रीय जनता दल के इसराइल मंसूरी की जीत हुई। इजरायल मंसूरी चुनाव से पहले जनता दल यूनाइटेड में ही थे। टिकट नहीं मिलने के कारण पाला बदल लिया। यहां से जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार मोहम्मद जमाल की करारी हार हुई। इस चुनाव में भी रेस नहीं रहे। गायघाट में भी राष्ट्रीय जनता दल से जनता दल यूनाइटेड में आए  विधायक महेश्वर यादव हार गए। जनता दल यूनाइटेड के ही मोच और लोजपा की संसद की पुत्री कोमल सिंह की बगावत यहां जनता दल यूनाइटेड को मंहगी पड़ी। 2020 में जिस तरह से भाजपा और लोजपा के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भारी झटका लगा। उसमें दो झटके मुजफ्फरपुर में भी शामिल थे। जाहिर है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 80 से 43 पर कैसे पहुंचे। फिर भी मुजफ्फरपुर के मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी आंखें बंद रखी।

यही नहीं मुजफ्फरपुर के साथ खास तौर पर यहां के कार्यकर्ताओं और प्रतिबद्ध नेताओं के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पटना में बैठे इस पार्टी के तमाम पदधारी नेताओं ने किस तरह की नाइंसाफी की इसकी शुरुआत के लिए 2010 के चुनाव में जाना पड़ेगा।

वही समय है, जब राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री की खास रहे दिनेश प्रसाद सिंह और वीणा देवी का इश एनडीए में की राजनीति में प्रवेश हुआ। दोनों नेताओं के प्रवेश के साथ भारतीय जनता पार्टी का मुजफ्फरपुर जिले की राजनीति में बढ़ा और राजपूत समाज का भी वर्चस्व बढ़ा।

2010 में जिले में एनडीए में 11 में से 10 सीट पर कब्जा किया लेकिन जनता दल यूनाइटेड की एक सीट जिले में कम हो गई। बरूराज में हार का सामना करना पड़ा और गायघाट और औराई दो सीट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा को भेंट कर दी। गायघाट से जनता दल यूनाइटेड के विधान पार्षद दिनेश प्रसाद की पत्नी वीणा देवी ने इस बार टिकट के मामले में बाजी मार दी। राष्ट्रीय जनता दल के महेश्वर प्रसाद यादव को हराकर भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर चुनी गई।

वही औराई के विधायक अर्जुन राय के सीतामढ़ी से सांसद चुन लिए जाने के कारण यह सीट रिक्त हुआ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस सीट को भाजपा के रामसूरत कुमार को सौंप दिया। वैसे, रामसूरत कुमार यहां से चुनाव में बतौर जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार गए थे। बरूराज में ब्रज किशोर सिंह राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर एकमात्र विजय हुए। बोचहां में राष्ट्रीय जनता दल के विधायक रहे रमई राम जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो जाने के कारण यहां से विधायक के लिए चुने गए। मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र से सुरेश कुमार शर्मा जीते। जिले में भाजपा के विधायकों की संख्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मेहरबानी के कारण एक से 3 हो गई। 2010 में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर सकरा से सुरेश चंचल, बोचहां से रमई राम, मीनापुर से दिनेश प्रसाद, यादव कांटी अजीत कुमार, साहेबगंज से राजू कुमार सिंह और कुढ़नी से मनोज कुशवाहा विधायक चुने गए। 2009 के चुनाव में जॉर्ज फर्नांडिस ने बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और दूसरी तरफ जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर शरद यादव विराजमान हुए। यह वही समय था, जनता दल यूनाइटेड में निर्दलीय चुने गए विधान पार्षद दिनेश प्रसाद सिंह शामिल हुए।

जिले में 2015 के विधानसभा चुनाव में नए महागठबंधन के साथ इस जिले में जनता दल यूनाइटेड का पूरी तरह से सफाया हो गया। एक भी विधायक इस दल के नहीं चुने गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल और गठबंधन में शामिल अन्य दलों के लिए छोड़ दी।जनता दल यूनाइटेड ने 2015 में 6 सीटों के स्थान पर जिले में तीन सीट पर खड़ी हुई। जिले में महागठबंधन के साथ जाने के कारण भारी नुकसान हुआ। चुनाव में फायदे में राष्ट्रीय जनता दल और भारतीय जनता पार्टी रही‌। जनता दल यूनाइटेड में राष्ट्रीय जनता दल के लिए गायघाट, औराई और सकरा के बीच छोड़ दी। मालूम हो कि सकरा सीट पर कभी जनता दल यूनाइटेड की हार नहीं हुई थी। इसके बावजूद इसे छोड़ दिया। सकरा से लाल बाबू राम, औराई से सुरेंद्र कुमार, गायघाट से महेश्वर यादव, मीनापुर से मुन्ना यादव और बरूराज से नंदकुमार राय विजय हुए। नंदकुमार राय तब जनता दल यूनाइटेड में थे लेकिन चुनाव में यह सीट बंटवारे में आरजेडी को दे दिया गया जिसके कारण वह राजद के सिंबल पर चुनाव लड़ें। जेडीयू जिले में जिस सीट को राजद के लिए छोड़ा। वहां जीत हुई और जो सीट जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों ने लड़ा हार हुई। 2014 में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर लगे लोक सभा के चुनाव में हारे विजेंद्र चौधरी को भारतीय जनता पार्टी के सुरेश कुमार शर्मा ने फिर हराया। बोचहां पूर्व मंत्री रमई राम भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार बेबी कुमारी से हारे।

भारतीय जनता पार्टी ने मुजफ्फरपुर के साथ-साथ पारू की जीत को बरकरार रखा। उसने जनता दल यूनाइटेड के कुढ़नी में मनोज कुशवाहा को हराकर एक नया सीट भी जीता।  पहली बार यहां से भाजपा के टिकट पर केदार गुप्ता विजय हुए। वहीं भारतीय जनता पार्टी समर्थन से बोचहां बेबी में कुमारी निर्दलीय जीती। कांटी निर्दलीय उम्मीदवार पशु चौधरी जीते।महागठबंधन के लहर में भी जदयू का खाता नहीं खुला। वैसे, इस चुनाव में गायघाट में भाजपा प्रत्याशी वीणा देवी को मनोज कुशवाहा के साथ-साथ हार मिली। चुनाव में एमएलसी दिनेश प्रसाद सिंह के करीबी रहे बिजेंद्र चौधरी लोकसभा के चुनाव के साथ-साथ विधान सभा  में हारे। इस जिले में जनता दल यूनाइटेड के संगठन कमजोरी को भले ही नजरअंदाज कर दिया गया।

कहने में थोड़ा संकोच होता है फिर भी सच यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गंगा पार की राजनीति को न तरजीह दी । इसे समझने का का प्रयास किया। यही हाल गंगा के आर- पार के कुर्मी के मामले में रहा। उन्होंने वैशाली को छोड़कर पूरे उत्तर बिहार में कभी भी कुर्मी जाति को मजबूत करने की कोशिश नहीं की। सिर्फ राजनीतिक प्रयोग करते रहे। मामले में सबसे दयनीय हालत मुजफ्फरपुर की रही। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस जिले को शुरू में मल्लाह के खाते में डाला दिया।जो जॉर्ज के जमाने से ही उनके नालंदा जाने के बाद जिले में चुनौती बने। मालूम हो कि कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद ने समता पार्टी 1996 और 1998 में उम्मीदवार डॉक्टर हरेंद्र कुमार को हराया। उसे ही 1999 में जनता दल यूनाइटेड का उम्मीदवार बना दिया गया। 2004 में जब फिर से जॉर्ज चुनाव वापस लड़ने के लिए आए, तब जॉर्ज को भी निषाद के विरोध का सामना करना पड़ा। फिर कैप्टन  निषाद के विरोध को देखते हुए। निषाद वोट के लालसा में महेंद्र सहनी को पहले एमएलसी फिर राज्यसभा भेजा गया। यही नहीं 2009 में जॉर्ज के उम्मीदवारी के बावजूद बार-बार दल बदलने वाले कैप्टन जयनारायण निषाद को जनता दल यूनाइटेड का उम्मीदवार बनाया गया।

कहने में थोड़ा संकोच होता है फिर भी सच यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गंगा पार की राजनीति को न तरजीह दी । इसे समझने का का प्रयास किया। यही हाल गंगा के आर- पार के कुर्मी के मामले में रहा। उन्होंने वैशाली को छोड़कर पूरे उत्तर बिहार में कभी भी कुर्मी जाति को मजबूत करने की कोशिश नहीं की। सिर्फ राजनीतिक प्रयोग करते रहे। मामले में सबसे दयनीय हालत मुजफ्फरपुर की रही। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस जिले को शुरू में मल्लाह के खाते में डाला दिया।जो जॉर्ज के जमाने से ही उनके नालंदा जाने के बाद जिले में चुनौती बने। मालूम हो कि कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद ने समता पार्टी 1996 और 1998 में उम्मीदवार डॉक्टर हरेंद्र कुमार को हराया। उसे ही 1999 में जनता दल यूनाइटेड का उम्मीदवार बना दिया गया। 2004 में जब फिर से जॉर्ज चुनाव वापस लड़ने के लिए आए, तब जॉर्ज को भी निषाद के विरोध का सामना करना पड़ा। फिर कैप्टन  निषाद के विरोध को देखते हुए। निषाद वोट के लालसा में महेंद्र सहनी को पहले एमएलसी फिर राज्यसभा भेजा गया। यही नहीं 2009 में जॉर्ज के उम्मीदवारी के बावजूद बार-बार दल बदलने वाले कैप्टन जयनारायण निषाद को जनता दल यूनाइटेड का उम्मीदवार बनाया गया।

उसी कैप्टन जयनारायण निषाद ने जदयू के संसद के रूप में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अपने आवास पर यज्ञ किया। अपने पुत्र अजय निषाद के एमपी के टिकट के लिए 2014 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।  मुख्यमंत्री मंत्री नीतीश कुमार निषाद राजनीति को अपने पक्ष में करने के लिए इसके बावजूद मछुआरा आयोग का गठन किया। 2014 के चुनाव में मछुआरा आयोग के अध्यक्ष विजय साहनी को वैशाली से उम्मीदवार बनाया। मुजफ्फरपुर के राज भूषण निषाद को मछुआरा आयोग का सदस्य बनाया। मालूम हो कि तब अनिल साहनी अपने पिता महेंद्र साहनी के निधन के बाद राज्यसभा भेजे गए थे। सिर्फ एक गणेश भारती कार्यकर्ता और मुख्यमंत्री के करीबी होने के कारण एक बार विधान परिषद के सदस्य बने । एक बार  मुख्यमंत्री के किसी राजनीतिक प्रयोग से जनता दल यूनाइटेड और मुजफ्फरपुर को क्या हासिल हुआ? यह सवाल नहीं बनता।

यही हालत जिले में कुशवाहा राजनीति को लेकर भी रही। जिले में जिस तरह से कुशवाहा को तरजीह देने के लिए कुर्मी को किनारे लगा दिया गया। कितनी उसका कितना अपमान और अपेक्षा हुआ। इसकी भी एक लंबी कहानी है। लगातार कुढ़नी और मीनापुर से उम्मीदवारी बनी हुई है। जिले में तो जदयू जिला अध्यक्ष की कुर्सी को उसके लिए आरक्षित ही कर दिया गया है। 

इन सारे राजनीतिक प्रयोग के बावजूद अगर जिले में पार्टी की स्थिति ऐसी हो गई है कि पार्टी का जिला कार्यालय तक में ताला लटक रहा है। पार्टी इस हालत में पहुंच गई है कि 2025 में 2015 की तरह खाता नहीं खुले तो बहुत बड़ी बात नहीं होगी। मुख्यमंत्री जी की अपनी मर्जी है वह जिला अध्यक्ष रामबाबू कुशवाहा को कुढ़नी का उम्मीदवार बना दें। व्यवसाय में व्यस्त रहने वाले पूर्व जिला अध्यक्ष को फिर से मीनापुर का टिकट दे दिया जाए। गायघाट में भी राजद से आए महेश्वर यादव को या उनके पुत्र को उम्मीदवार बना दिया जाए। नहीं तो एमएलसी दिनेश प्रसाद सिंह की पुत्री को उम्मीदवार बनाकर इस जिला को एक बार फिर से कोसा जाए। सकरा में अलोकप्रिय बीमार और बीमार अशोक चौधरी और या उसके पुत्र को फिर से टिकट देकर मुजफ्फरपुर के कार्यकर्ताओं एवं नेताओं पर हार का तोहमत मढ़ दिया जाए। सच तो यह है कि न मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके संगठन के लोग या कोई मंत्री विधायक ईमानदारी से इस जिले के मीमांसा के लिए तैयार नहीं है। सिर्फ गणेश परिक्रमा करने वाले लोगों की बात सुनी जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा अपने विरोधियों को गले लगाकर धोखा खाने में विश्वास किया।

आज की तारीख जनता दल यूनाइटेड का संगठन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घूर विरोधी के इशारे पर चलता है। संगठन के पदाधिकारी उनके कृपा पात्र हैं। मुजफ्फरपुर में मछली से प्रेम सिर्फ मुख्यमंत्री को ही नहीं मछली प्रेमी शीर्ष नेता रहे हैं। तमाम क्षति के बावजूद आज की तारीख में भी जयचंद लहरा और फहरा रहे हैं।

(लेखक प्रभात कुमार दैनिक हिन्दुस्तान से लंबे समय तक संबद्ध रहे हैं. वे अभी लोकवार्ता न्यूज के संपादक हैं.)

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