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बिहार से मंडलवाद की विदाई नीतीश के साथ तय!

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* प्रभात कुमार

बिहार से मंडलवाद की विदाई नीतीश के साथ तय!


कितने संघर्ष और कितने शहादत के बाद जो पिछड़ा वर्ग बिहार के सत्ता में आया। क्या अब उसकी विदाई के दिन तय होने जा रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो इसके लिए पुरजोर कोशिश हो रही है। यह भी साफ है कि यह कोशिश कौन कर रहा है और इसका मकसद क्या है? बिहार के 2025 विधानसभा चुनाव में 1990 से जारी मंडलवाद को खत्म करने की तैयारी भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है। यह संभवत किसी से छिपा हुआ नहीं है। हम बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी बीमारी व सेहत से नहीं। भारतीय जनता पार्टी और उसके इरादे से शुरू कर रहे हैं। क्या बिहार में मंडलवाद को खत्म करने के लिए भारतीय जनता पार्टी सम्राट चौधरी अथवा नित्यानंद राय को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर बिहार के उसे मंडलवाद को खत्म कर सकेगी। जिसका जन्म बिहार में बीपी मंडल, जगदेव बाबू और कर्पूरी ठाकुर जैसे समाजवादी नेताओं ने बिहार में बड़े संघर्ष के बाद रखा और देश यशस्वी प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के साहसिक फैसला के कारण बिहार में मंडल बाद सत्ता में आ सका। यह सच है कि कोई साढ़े तीन दशक से बिहार की राजनीति से मंडलवाद को कोई भी अपदस्थ नहीं कर सका है। यह मंडल की ताकत कहे या उसकी एकता। यह सच है कि कोई साढ़े तीन दशक से बिहार की सत्ता पर लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, नीतीश कुमार और 1 साल के लिए करीब जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कायम हैं। अगर इसमें कर्पूरी ठाकुर और अन्य पिछड़ा मुख्यमंत्री के कार्यकाल को भी जोड़ दिया जाए। तो करीब यह साढ़े 37 साल का मामला बनता है।

वैसे 90 के पहले 41 सालों में तो कोई भी पिछड़ा इस राज्य में 3 साल भी राज्य नहीं कर सका। कांग्रेस के दरोगा प्रसाद राय रहे हो या समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर 1 साल भी बिहार के मुख्यमंत्री लगातार नहीं रहे। 1990 से पहले कर्पूरी ठाकुर ही एक ऐसे गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे जो दो बार में लगभग डेढ़ साल बिहार के मुख्यमंत्री रहे। किस राज्य के सबसे पहले पिछड़ा मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह का कार्यकाल मात्र चार दिन का रहा। बीपी मंडल भी साल पूरा नहीं कर सके।उसे राज्य करने के लिए एक पूरा कार्यकाल भी नहीं मिला। इतिहास के आईने में यह भी बात उतने ही साढ़े 16 आने सच है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी पार्टी की ओर से ऐसे नेता को आगे किया है, जो जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कसौटी पर खड़ा ना उतरे। जिस पर दल- बदल का आरोप लगाया जा सके। के भरोसे पर सवाल उठ सके। यही नहीं अंतिम समय में उसे मुख्यमंत्री के दौर से आसानी से अलग किया जा सके। 

ऐसे में यह साफ है कि सम्राट चौधरी भारतीय जनता पार्टी का एक छद्म में चेहरा है। इसके नाम पर बिहार में कोईरी भी समाज का वोट लिया जा सके। जहां तक कुर्मी समाज का सवाल है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में रहते हुए कोई दूसरा व्यक्ति को आगे लाया जाता है तो खतरा तय है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी और उसका नेतृत्व लगातार यह बात कह रहा है कि बिहार में एनडीए हर हाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा। वैसे बिहार के लोगों को यह भी मालूम है कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी ने एकनाथ शिंदे मॉडल के रूप में क्या किया। 

अंत में इतना ही कहा जा सकता है कि इस चुनाव में बिहार के मंडलवाद को खतरा तेजस्वी यादव से नहीं भारतीय जनता पार्टी से है। सबको यह भी मालूम है कि अगर वह एक बार भारतीय जनता पार्टी का शासन बिहार में आ गया, तब इसे हटाना कितना कठिन होगा। संविधान, जनतंत्र और न्यायपालिका का सम्मान वर्तमान मंत्री नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार कितना करती है। यह भी सबके सामने है। 

ऐसे में यह बिहार का विधानसभा चुनाव सिर्फ पूर्व की तरह चुनाव नहीं है बल्कि पिछड़ा दलित और अकलियत (80 फ़ीसदी) के लिए एक निर्णायक लड़ाई भी है।


(लेखक दैनिक हिंदुस्तान, मुजफ्फरपुर संस्करण में वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं)

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