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क्या अमित शाह करेंगे तेजस्वी का राजतिलक !

- नीतीश और मोदी इतने अब हो चुके कमजोर 

प्रभात कुमार

क्या अमित शाह करेंगे तेजस्वी का राजतिलक !


बिहार के मुख्यमंत्री बिहार की जनता और बिहार के नवनिर्वाचित विधायक ही तय करेंगे। यह उतना ही सत्य है। जितना सूर्य का पूर्व में उगना और पश्चिम में अस्त होना। विधानसभा 2025 के चुनाव में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि बिहार की मुख्यमंत्री का फैसला गुजरात तय करेगा। विपक्ष के कहने का आशय है कि  गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तय करेंगे। इस भ्रम की स्थिति और विपक्ष के प्रचार के पीछे निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी का चाल चरित्र और चेहरा है। यह भी उड़ीसा हुए विधानसभा चुनाव और महाराष्ट्र के चुनाव के साथ-साथ इन दोनों चुनाव से पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री का चेहरा शंका का कारण बनता है।

बिहार में लोकसभा चुनाव के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी और खास तौर पर गुजरात से आने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित तमाम नेताओं पर 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा। इस पर फैसला लेने के लिए जनता दल यूनाइटेड के गिने चुने नेताओं को छोड़ दें, तो शेष तमाम नेताओं और बड़ी आबादी की इच्छा जरूर थी कि भारतीय जनता पार्टी इस मामले में अपना स्टैंड साफ कर दें। फिर भी बिहार में चुनाव अभियान की शुरुआत और प्रधानमंत्री के पहले दौरे और चुनावी सभा के बावजूद बिहार का भावी मुख्यमंत्री कौन होगा? इस रहस्य पर से पर्दा नहीं उठा। अभी भी देश की गृह मंत्री अमित शाह अपने फैसले पर अडिग हैं। उनका कहना है कि सीएम का फैसला विधायक दल की बैठक में तय होता है। यह एक बड़ी सच्चाई है लेकिन लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चेहरा बनाए गए या नहीं। बिहार में विपक्ष ने क्यों तेजस्वी यादव को कम का चेहरा बनाया है। इतना ही नहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्यों चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सीएम फेस बनाने की घोषणा की। सवालों के जंगल में कांटे ही कांटे हैं।

दूसरी तरफ अभी कहा जा रहा है कि अगर यह तस्वीर साफ नहीं हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 अक्टूबर को अपनी सभा में इसकी घोषणा नहीं करते हैं तो फूलों के मुरझाने का भी खतरा संभव है। वैसे,ईवीएम को लेकर तरह-तरह की बातें होती है। ऐसी स्थिति में दावा तो कुछ नहीं किया जा सकता है। देश के वर्तमान गृह मंत्री अब तक भाजपा के लिए बड़े संकट मोचक साबित होते रहे हैं। सिर्फ बीते साल झारखंड में हुए चुनाव में उनका घुसपैठिए, हिंदू- मुसलमान,मुजरा और ईडी और सीबीआई के बावजूद झारखंड में करारी हार हुई। यह महज संजोग था या जनता की ताकत। यह तो बिहार चुनाव ही बताएगा। बिहार में भी जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के कुनबे में गुटबंदी है। इसका कितना बिहार के चुनाव पर असर पड़ रहा। 

बिहार विधानसभा चुनाव में भी दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में मंत्री अमित शाह को सीधी चुनौती देने वाले सांसद राजीव प्रताप रूडी जिस तरह से यह खुलकर बोल रहे हैं कि बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे, मुख्यमंत्री है और मुख्यमंत्री रहेंगे। प्रदेशअध्यक्ष दिलीप जायसवाल सहित तमाम उम्मीदवार और नेता चुनाव प्रचार और अपने भाषण में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कोई टीका टिप्पणी और उनके चेहरे को लेकर असमंजस की बात करने तक का साहस नहीं जुटा रहे। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह का स्टैंड कब तक अलग बना रहता है। यह दिलचस्प होगा। 

मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर बिहार विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तमाम साथी जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह से राय अलग रखते हैं। सीएम चेहरा के मामले में सिर्फ लोजपा पर रामविलास के सुप्रीमो चिराग पासवान गृह मंत्री अमित शाह के पक्षधर रहे हैं। वहीं उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी जी का कहना है कि बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कोई वैकेंसी नहीं है। वैसे, इस सवाल पर जनता दल यूनाइटेड में ही केंद्रीय राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भक्त जनता दल यूनाइटेड के कार्यकारी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह खुलकर बोलने से परहेज करते दिखते हैं। दरअसल एक तरफ उनकी मंत्री की कुर्सी है और भविष्य है और दूसरी तरफ ढलते सूरज की तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। बिहार के जनता दल यूनाइटेड के एक बड़े नेता हरिवंश भी हैं,जो इन दिनों लगातार राज्यसभा का उपसभापति होने के बावजूद बिहार के विकास की गाथा लिख रहे हैं और उसे गाथा में उनकी कोशिश है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्थापित किया जाए। सच तो यह है कि उन्होंने भी जनता दल यूनाइटेड को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम रखा है। मालूम हो कि बिहार में जनता दल यूनाइटेड की तुलना में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के प्रति ज्यादा वफादार दिखते हैं।

उधर, भारतीय जनता पार्टी में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय पूरी पार्टी में जिस तरह से टिकट बंटवारे में भारी पड़े हैं। वहीं पिछड़ा नेता चाहे, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल और पूर्व सांसद संजय जायसवाल, पूर्व डिप्टी सीएम रेणू देवी और तारकेश्वर प्रसाद के साथ-साथ जिस तरह से विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव को भी दरकिनार किया गया है। इसके कारण भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश इकाई में भारी नाराजगी और क्षोभ है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद हों यह आरके सिंह अथवा शाहनवाज हुसैन सभी दुखी जरूर है़ं।

अंतिम बात यह की विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का सीम फेस को लेकर बड़ा सवाल और गुजराती लॉबी पर बड़ा आघात। जनता दल यूनाइटेड के वोटरों के बीच चिंता तो जरूर पैदा कर रहा है। 

यह बात अलग है कि महिलाएं हो या चौक चौराहे और दुकानों पर चर्चा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सबसे भारी हैं। हर आदमी इसी बात को लेकर उलझा है कि बिहार में नीतीश कुमार का विकल्प कौन हो सकता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कम से कम परिवारवाद और भ्रष्टाचार के साथ-साथ व्यक्तिगत लोभ लाभ से दूर रहे। पुत्र हो या परिवार इस मामले में पाक साफ है। भले ही इस मामले में उनके दल के मंत्री विधायक या नेता उनके मापदंड पर खड़ा नहीं उतरते हों। मंत्री अशोक चौधरी हो या कैबिनेट के जनता दल यूनाइटेड कोटे के अन्य मंत्री जिसमें ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार को भी शामिल किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में बिहार में एक बार फिर से प्रशांत किशोर के शब्दों में नीतीशे कुमार का फिलहाल पलड़ा भारी दिखता है।

इस बीच चुनाव में यह चर्चा एनडीए के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है कि लालटेन ही तीर है और तीर ही लालटेन। इसकी सत्यता का कोई प्रमाण नहीं दिया जा सकता। फिर भी भाजपा के लिए और उससे भी ज्यादा लोग जनशक्ति पार्टी रामविलास के लिए यह कितना नुकसान देह साबित हो सकता है। तो वोटिंग से ही पता चल सकता है। फिर भी गृह मंत्री अमित शाह का भाषण और उनकी रणनीति कहीं ना कहीं विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को इस चुनाव में मजबूती प्रदान कर रही है।

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के सीनियर जर्नलिस्ट रहे हैं)

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