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कमल व तीर की स्वच्छ छवि पर बदनामी के छींटे

- सरकार भ्रष्टाचारियों पर मेहरबान, जारी है पदोन्नति

- एक नहीं कई उदाहरण, फिर भी चुप्पी क्यों!

कमल व तीर की स्वच्छ छवि पर बदनामी के छींटे


* प्रभात कुमार

बिहार में बड़ी चर्चा है कि जन सुराज पार्टी के सुप्रीमो प्रशांत किशोर घाट- घाट का पानी पिया है। इसके कारण नेताओं की कुंडली और उनके गड्ढे भी अच्छी तरह से मालूम है। यही कारण है कि चुनाव से पहले उनकी बाॅलिंग बहुत सटीक पिच पर नजर आ रही है। अनुभवी गेंदबाज की तरह गड्ढे में ही गेंद डालते हैं और अपने जाल में फंसा लेते हैं। 

इन दिनों जिस तरह से एनडीए के कुछ नेताओं के भ्रष्टाचार की कुंडली को जिस तरह से खंगाल है। इसके पीछे जो भी राजनीति हो। फिर भी वह जनता के पसंद बनते जा रहे हैं। आजकल मंगल बाबा का अमंगल गान पर भिड़े हुए हैं। सच तो यह है कि बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे भी एलबीडब्ल्यू की अपील में फंसे हैं। वैसे, आउट और नॉट आउट का फैसला तो जिसको करना है। उससे बहुत उम्मीद नहीं दिखती। फिर भी शक जनता की नजर में सच्चाई में तब्दील होता दिख रहा है। बिहार की सरकार और सरकार के मुखिया नीतीश कुमार अगर भ्रष्टाचार के मामले में जिस तरह अपनी कार्रवाई के लिए चर्चित रहे हैं। अगर वह आज स्थिति होती तो नगर विकास और आवास मंत्री जीवेश मिश्रा नकली दवा के मामले में कोर्ट से सजाया जाता होने के बावजूद मंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। यह शायद संभव नहीं होता। स्वास्थ्य विभाग में जो भी कुछ सुधार बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के जिम्मे यह विभाग था। तब दिखा था। वह  स्थिति आज नहीं है। आज जिस तरह से इस विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग का पैमाना है। तब अगर ऐसा होता तो मुख्यमंत्री फाइल पर ही कुंडली मारकर बैठ जाते हैं। अगर आदेश जारी भी होता तो उसे निरस्त करने का भी आदेश साथ-साथ जारी कर दिया जाता।

बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएमएसआईसीएल) स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी इ।काई है। क्या अधिकारी क्या मंत्री सबके पौ बारह यहां दिखते हैं। प्रशांत किशोर जी ने खुलकर स्वास्थ्य विभाग मामले में बैटिंग नहीं की है। बिहार के स्वास्थ्य सेवा को लेकर उन्होंने जनता को अपना शासन आने पर बेहतरी भरोसा जरूर दिलाया है, लेकिन बिहार में जिस तरह से सरकारी से लेकर प्राइवेट तक में लक्ष्मी की बारिश होती है। इस बारे में विस्तार से चर्चा करना। डॉक्टर से नाराजगी मोल लेना है। आम लोग इस बारे में बेहतर जानते हैं। 

यही कारण है कि प्रशांत किशोर जब शिक्षा और स्वास्थ्य के सुधार की बात करते हैं, तो बातें गले नहीं उतर पाती। कारण यह है कि जब तक शिक्षा और स्वास्थ्य की सेवाएं आम लोगों के लिए एक समान नहीं होगी। तब तक सुधार एक कोरा सपना है। अगर विधायक जी का बेटा हमारे बच्चों के साथ पढ़ाई करेगा और जैसा की आज से पांच दशक पहले स्कूल और कॉलेज में सरकारी बड़े अधिकारियों के भी बच्चे पढ़ते थे। तब शायद इतनी गिरावट नहीं आई थी। मुजफ्फरपुर का एलएस कॉलेज हो या भागलपुर का टीएनबी कॉलेज अथवा पटना का साइंस कॉलेज या पटना कॉलेज पटना वूमेनस कॉलेज, पटना इंजीनियरिंग कॉलेज या एमआईटी सारे अधिकारी और राजनेता इन्हीं शिक्षण संस्थानों से आते थे। जिला स्कूल सर्वोत्तम हाई स्कूल था। फिर सेंट्रल स्कूल का जमाना आया।

अब तो साहब और नेताओं के बच्चे राजधानी के महंगे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं या साधन है तो विदेश भेज दिया जाता। चिकित्सा सेवा को भी देखे तो बहुत ही लाचार और साधनहीन को छोड़ सभी को प्राइवेट का ही भरोसा है। गरीबी जमीन और मकान बेचकर इलाज प्राइवेट में ही करना चाहते हैं।

एक नहीं अनेकों मामला है। कमल की तरह स्वच्छ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल क्या पूरा कच्चा चिठ्ठा किशनगंज मेडिकल कॉलेज से लेकर दिल्ली में स्वास्थ्य मंत्री के पत्नी के नाम पर फ्लैट खरीदे जाने की कहानी के बावजूद मुख्यमंत्री और पूरी सरकार कान में तेल डालकर सोई है। जनता दल यूनाइटेड के मंत्री और मुख्यमंत्री के दुलारे धर्मपुत्र अशोक चौधरी के बारे में क्या नहीं कहा गया। इसके बावजूद वह मंत्री पद पर बने हुए हैं। उन्होंने जो प्रशांत किशोर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा करने की घोषणा की थी। न जाने वह किस फाइल में सारी बातें दब गई। यही हाल बिहार सरकार में 17000 करोड़ के हिसाब का भी है। फिर भी सरकार कहती है कि करप्शन से कोई कंप्रोमाइज बिहार में नहीं होता है। सच तो यह है कि अगर प्रशांत किशोर का दावा में दम है तो बिहार भ्रष्टाचार के नए कृतिमान की तरफ लगातार अग्रसर  हो रहा है रोज एक नई कहानी को लेकर प्रशांत किशोर जनता के सामने आ रहे हैं। अगर यही अभियान जारी रहा और स्वच्छता के दावे की कलाई लगातार खोल रहे तो विकास एक तरफ रह जाएगा और भ्रष्टाचार दूसरी तरफ। जनता को वोट देते समय यह तय करना होगा कि वह विकास और भ्रष्टाचार की तरफ जाए या नए विकल्प की तलाश करें।

(लेखक दैनिक हिंदुस्तान के सीनियर रिपोर्टर रहे हैं.)

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