- पार्टी और सरकार के लिए जदयू को अपनाना होगा राबड़ी मॉडल
- चिराग पासवान और प्रशांत किशोर बनेंगे खतरा
* प्रभात कुमार
बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि जनता दल यूनाइटेड बचेगी या नहीं। यह चिंता जहानाबाद के पूर्व सांसद डॉ अरुण कुमार की भी है और राज्यसभा सदस्य राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की ही नहीं। मेरे जैसे हजारों- सैकड़ों लोगों की है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य और उम्र को लेकर उनके पुत्र निशांत कुमार के राजनीति में एंट्रेंस को लेकर बार-बार सवाल उठ रहा है। डॉ अरुण पहले व्यक्ति है। जिन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मानसिक स्थिति को लेकर सवाल उठाया और साजिश तक की बात कही। उन्होंने बहुत पहले निशांत को राजनीति में लाने की सलाह दी। उनका मानना आज भी है कि निशांत के बिना वर्तमान स्थिति में जनता दल यूनाइटेड को नहीं बचाया जा सकता।
जनता दल यूनाइटेड की वही स्थिति है। जो एक समय तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के समय था। यह सच है कि राष्ट्रीय जनता दल को राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाकर बचा लिया गया। वह समय भी राष्ट्रीय जनता दल के लिए कम कठिन नहीं था। फिर भी राबड़ी देवी के प्रयोग से राष्ट्रीय जनता दल और सरकार दोनों बच गई। यह सही था या गलत था। यह विवेचना का विषय तत्काल नहीं है। कारण, आज सभी दल नीति और सिद्धांत से ऊपर उठकर राजनीति कर रहे हैं।
क्या, वर्तमान जनता दल यूनाइटेड की हालत को देखते हुए राष्ट्रीय जनता दल के उस मॉडल को अपनाने का समय नहीं आ गया है? लेकिन अगर सवाल को लेकर मंथन करें तो राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड की परिस्थितियां अलग-अलग है। जिस समय लालू प्रसाद यादव को जेल जाना पड़ा और राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया। उस समय आज की तरह बिहार में गठबंधन की सरकार नहीं थी। राष्ट्रीय जनता दल में कम से कम जनता दल यूनाइटेड से ज्यादा पार्टी के बड़े नेता अपने दल और पार्टी नेता के प्रति ईमानदार थे। जो चर्चा है और जो पार्टी की नीति और सिद्धांत रही है। उसके इतर जिस तरह से बीते दिनों संसद में वक्फ बिल के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इतर राय पार्टी के मंत्री और नेता का सदन में दिखा। इसके अतिरिक्त भी जिस तरह से अपने नेता से अधिक पार्टी के सांसदों का प्रधानमंत्री और देश के गृह मंत्री के प्रति झुकाव दिखता है। भाजपा के प्रति आसक्ति दिखती है इससे साफ है कि जनता दल यूनाइटेड राष्ट्रीय जनता दल की तुलना में काफी कमजोर स्थिति में है।
अगर जनता दल यूनाइटेड के सही स्थिति का आकलन किया जाए तो हालात पार्टी में टूट और विभाजन जैसी दिख रही है। यही नहीं पार्टी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रिय केंद्रीय मंत्री, कार्यकारी अध्यक्ष और सांसद विधायक से अगर कोई आज रायसुमारी कराई जाए, तो उनकी राय भारतीय जनता पार्टी के साथ जनता दल यूनाइटेड के विलय का होगा। इसमें अब संदेह नहीं दिखता। यह अलग बात है कि संसद गिरधारी यादव जैसे अनेकों नेता किसी भी कीमत पर इस प्रस्ताव के पक्ष में खड़े होंगे। यह संभव नहीं दिखता।
जनता दल यूनाइटेड में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद कुर्मी समाज के मंत्रिमंडल में प्रतिनिधि के तौर पर श्रवण कुमार मंत्री बने हुए हैं। अगर उनकी राय इस बारे में जानने की कोशिश की जाए तो दिमाग भाजपा के साथ है और दिल राजद के साथ है। जनता दल यूनाइटेड में ऐसे भी कई नेता हैं।
जनता दल यूनाइटेड की जो वर्तमान स्थिति है। उसमें अब तो सरकार के बारे में तो चुनाव के पहले बहुत कुछ नहीं दिखता है। भारतीय जनता पार्टी जो सिर्फ इस देश की सबसे बड़ी पार्टी है।केंद्र में भी उसकी सरकार है। उसके पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा मजबूत संगठन और सैकड़ों आज की तारीख में सहयोगी संगठन है। वह अगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से हटाने का साहस नहीं कर पा रहा है, तो इसके पीछे भी कोई मजबूत कारण होगा। सिर्फ इंटेलिजेंस और सर्वे के आधार पर ही ऐसा फैसला नहीं लिया या जा सकता। कारण केंद्र की सरकार भी है। जिसको कहीं ना कहीं जनता दल यूनाइटेड का सपोर्ट है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो एनडीए के नेता और मुख्यमंत्री 2014 से पहले भी बिहार में रहे। बिहार का एक-एक आदमी इस बात का गवाह है कि 2005 से लेकर 2010 का जो नीतीश कुमार के कार्यकाल का समय रहा। वह बिहार के लिए स्वर्णिम काल से कम नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहे जिस गठबंधन के साथ रहे हो बीते 20 सालों में सिर्फ 8 महीने को छोड़कर वही बिहार के मुख्यमंत्री रहे। यह भी सत्य है। 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी उनके साथ गठबंधन में रही भी और नहीं भी रही। फिर भी सरकार नहीं गिरी। निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मजबूत आधार को देखते हुए 2025 के चुनाव परिणाम से पहले उन्हें छेड़ने की स्थिति में नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण पार्टी से भी इतर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का व्यक्तिगत वोट बैंक है। जो पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, केंद्रीय मंत्री ललन सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और बिहार में विजय चौधरी और अशोक चौधरी जैसे मंत्री के कहने पर भी जनता किसी दल के पक्ष में वोट डाल सकती है। सच तो यह है कि जनता दल यूनाइटेड में इन नेताओं के कहने पर पार्टी के सदस्य भाजपा के पक्ष में वोट डालेंगे। इसका भरोसा भारतीय जनता पार्टी को नहीं है।
सबसे अजीबोगरीब बात यह है कि बिहार में वर्तमान कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और अराजकता को लेकर यहां की जनता जितना दोषी इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मनाना चाहिए। उससे अधिक इसके लिए दोषी भारतीय जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर जनता दल यूनाइटेड में काम कर रहे नेताओं को मानती है।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता के नजर में छवि एक लाचार, विवश और केंद्र के दबाव में काम कर रहे सीएम की है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य और उम्र को लेकर जो दिक्कत उसको लेकर जो जनता में आक्रोश होना चाहिए। इसके ठीक विपरीत परिस्थितियों हैं। बिहार की जनता अपने नायक नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का दबाव हो या उनके हनुमान चिराग पासवान का इसको लेकर कहीं से भी खुश नहीं है। अगर ऐसा है भी तो उनकी संख्या बहुत कम है। बिहार की जनता डिप्टी सीएम विजय सिन्हा,केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, विधायक हरि भूषण बचौल जैसे नेता को कितना पसंद करती है। यही नहीं विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और विरोधी दल के गठबंधन को बिहार के लिए कितना सक्षम मानती है। यह भी मंथन का सवाल है।
बिहार में वर्तमान स्थिति उड़ीसा और वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जैसी भी नहीं दिखती। भले ही भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इसी अंदाज में बिहार से निपटना चाहती है लेकिन अभी तक ऐसा माहौल नहीं बन सका है।
ऐसे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करना उचित होगा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जो स्वास्थ्य और उम्र है। उसमें 2025 से 2030 फिर से नीतीश का जनता दल यूनाइटेड का जो नारा है। वह राष्ट्रीय जनता दल या भारतीय जनता पार्टी स्वीकार करेगी। साथ ही बिहार की वर्तमान स्थिति में जिस तरह से अधिकारी बेलगाम है। कर्मचारी मनमाना कर रहे हैं। भ्रष्टाचार, अराजकता और कानून व्यवस्था की लचर स्थिति जो है और जिस तरह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कुछ पसंद रिटायर और वर्तमान अधिकारी के साथ मिलकर कुछ प्रिय नेता मनमानी कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में जनता पूरी तरह साथ दे सकेगी। इसमें संदेह दिखता है।
ऐसी स्थिति में जनता दल यूनाइटेड और बिहार में अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास निश्चित तौर पर निशांत कुमार का ही विकल्प बच गया है। वैसे, इस मामले में भी निर्णय लेने में देरी हो रही है। अगर कुछ समय और निकल गया तो सरकार और पार्टी दोनों हाथ से निकल सकता है।
जनता दल यूनाइटेड की जो वर्तमान स्थिति है। उसमें अब तो सरकार के बारे में तो चुनाव के पहले बहुत कुछ नहीं दिखता है। भारतीय जनता पार्टी जो सिर्फ इस देश की सबसे बड़ी पार्टी है।केंद्र में भी उसकी सरकार है। उसके पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा मजबूत संगठन और सैकड़ो आज की तारीख में सहयोगी संगठन है। वह अगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से हटाने का साहस नहीं कर पा रहा है, तो इसके पीछे भी कोई मजबूत कारण होगा। सिर्फ इंटेलिजेंस और सर्वे के आधार पर ही ऐसा फैसला नहीं लिया या जा सकता। कारण केंद्र की सरकार भी है। जिसको कहीं ना कहीं जनता दल यूनाइटेड का सपोर्ट है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो एनडीए के नेता और मुख्यमंत्री 2014 से पहले भी बिहार में रहे। बिहार का एक-एक आदमी इस बात का गवाह है कि 2005 से लेकर 2010 का जो नीतीश कुमार के कार्यकाल का समय रहा। वह बिहार के लिए स्वर्णिम काल से कम नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहे जिस गठबंधन के साथ रहे हो बीते 20 सालों में सिर्फ 8 महीने को छोड़कर वही बिहार के मुख्यमंत्री रहे। यह भी सत्य है। 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी उनके साथ गठबंधन में रही भी और नहीं भी रही। फिर भी सरकार नहीं गिरी। निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मजबूत आधार को देखते हुए 2025 के चुनाव परिणाम से पहले उन्हें छेड़ने की स्थिति में नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण पार्टी से भी इतर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का व्यक्तिगत वोट बैंक है। जो पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, केंद्रीय मंत्री ललन सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और बिहार में विजय चौधरी और अशोक चौधरी जैसे मंत्री के कहने पर भी जनता किसी दल के पक्ष में वोट डाल सकती है। सच तो यह है कि जनता दल यूनाइटेड में इन नेताओं के कहने पर पार्टी के सदस्य भाजपा के पक्ष में वोट डालेंगे। इसका भरोसा भारतीय जनता पार्टी को नहीं है।
सबसे अजीबोगरीब बात यह है कि बिहार में वर्तमान कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और अराजकता को लेकर यहां की जनता जितना दोषी इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मनाना चाहिए। उससे अधिक इसके लिए दोषी भारतीय जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर जनता दल यूनाइटेड में काम कर रहे नेताओं को मानती है।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता के नजर में छवि एक लाचार, विवश और केंद्र के दबाव में काम कर रहे सीएम की है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य और उम्र को लेकर जो दिक्कत उसको लेकर जो जनता में आक्रोश होना चाहिए। इसके ठीक विपरीत परिस्थितियों हैं। बिहार की जनता अपने नायक नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का दबाव हो या उनके हनुमान चिराग पासवान का इसको लेकर कहीं से भी खुश नहीं है। अगर ऐसा है भी तो उनकी संख्या बहुत कम है। बिहार की जनता डिप्टी सीएम विजय सिन्हा,केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, विधायक हरि भूषण बचौल जैसे नेता को कितना पसंद करती है। यही नहीं विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और विरोधी दल के गठबंधन को बिहार के लिए कितना सक्षम मानती है। यह भी मंथन का सवाल है।
बिहार में वर्तमान स्थिति उड़ीसा और वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जैसी भी नहीं दिखती। भले ही भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इसी अंदाज में बिहार से निबटना चाहती है लेकिन अभी तक ऐसा माहौल नहीं बन सका है।
ऐसे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करना उचित होगा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जो स्वास्थ्य और उम्र है। उसमें 2025 से 2030 फिर से नीतीश का जनता दल यूनाइटेड का जो नारा है। वह राष्ट्रीय जनता दल या भारतीय जनता पार्टी स्वीकार करेगी। साथ ही बिहार की वर्तमान स्थिति में जिस तरह से अधिकारी बेलगाम है। कर्मचारी मनमानी कर रहे हैं। भ्रष्टाचार, अराजकता और कानून व्यवस्था की लचर स्थिति जो है और जिस तरह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कुछ पसंद रिटायर और वर्तमान अधिकारी के साथ मिलकर कुछ प्रिय नेता मनमाना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में जनता पूरी तरह साथ दे सकेगी। इसमें संदेह दिखता है।
ऐसी स्थिति में जनता दल यूनाइटेड और बिहार में अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास निश्चित तौर पर निशांत कुमार का ही विकल्प बच गया है। वैसे, इस मामले में भी निर्णय लेने में देरी हो रही है। अगर कुछ समय और निकल गया तो सरकार और पार्टी दोनों हाथ से निकल सकता है।
(लेखक हिंदुस्तान अखबार के वरिष्ठ पत्रकार है)

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