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बिहार आगे भी बनेगा रोल मॉडल, महिला बिल इसकी बानगी

 प्रभात कुमार

महिला आरक्षण विधेयक की मंजूरी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक अध्याय में एक नया अध्याय जुड़ गया। इस मामले में लगभग सर्वसम्मति रही। किसी दल या नेता ने इसके विरोध का साहस नहीं जुटाया। उम्मीद है कि राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के साथ ही यह जल्द ही कानून बन जाएगा और अमल में भी आना चाहिए। वैसे, इस विधेयक के श्रेय को लेकर आपस में बखेड़ा हो रहा है। कांग्रेस अपनी तरफ से दावा कर रही है और भाजपा का अपना दावा है। बरहाल जो जीता वही सिकंदर। प्रजातंत्र में बहुमत की प्रधानता है। फिलहाल अपार बहुमत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ है। ऐसे में विपक्ष इस ताकत में भी नहीं है कि वह इसका विरोध करें या सरकार को संशोधन के लिए मजबूर कर दें। फिर भी नई संसद भवन का आगाज सुखद रहा। स्वस्थ राजनीति हुई और लंबे अरसे से लंबित महिला विधायक को सर्वसम्मति से मंजूरी मिली, लेकिन इतना सच है कि पैमाना भले ही राज्य स्तर का रहा हो महिला सशक्तिकरण का अगुवा पूरे देश में बिहार रहा है। 2005 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी। उसके अगले साल 2006 में  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में महिला बिल पंचायत निकायों में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया। 

बिहार आगे भी बनेगा रोल मॉडल, महिला बिल इसकी बानगी

बिहार देश का पहला राज्य है। जिसने महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं में 50% का आरक्षण दिया। फिर इसके अगले साल 2007 में नगर निकायों में भी महिलाओं को 50% आरक्षण देकर महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में पूरे देश को आइना दिखाया था। यही नहीं परिस्थिति चाहे जो भी रही। वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ रहे या महागठबंधन के साथ महिला सशक्तिकरण के मामले में वह अपने इरादे पर दृढ़ रहे। 2013 में बिहार पुलिस में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया। इसके पहले भी 2006 में प्रारंभिक शिक्षकों की बहाली में महिलाओं के लिए 50 फ़ीसदी पद आरक्षित किया था। 2007 में तो उन्होंने सभी सरकारी नौकरियों के लिए महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण दे दिया। 

अब तो बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के सभी मेडिकल और इंजीनियरिंग के साथ-साथ स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी में भी दाखिला लेने के लिए 33% सीट छात्राओं के लिए आरक्षित कर दिया है। लिहाजा कोई माने या ना माने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महिला सशक्तिकरण पूरे देश में एक मील के पत्थर से कम नहीं। बिहार के एक पिछड़ी  कमजोर वर्ग से आने वाले नीतीश कुमार इस देश में कई मामले में रोड मॉडल रहे हैं। सत्ताधारी पार्टी और मीडिया भले हैं इसे स्वीकार नहीं करें लेकिन यह जमीनी सच्चाई है। यह और बात है की दायरा छोटे होने और एक छोटी पार्टी के मुखिया होने के कारण उनके कार्यों को वह ऊंचाई नहीं मिली। उसका प्रचार- प्रसार भी अछूता रहा। कारण व भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय पार्टी के मुख्यमंत्री नहीं रहे और उनका कोई राष्ट्रीय कद भी नहीं रहा।

आज भी देश और दुनिया में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह बालिका साइकिल योजना की चर्चा होती है। वह अपने आप में पूरी दुनिया को बिहार जैसे पिछले प्रदेश में एक रोड मॉडल के रूप में दिखता है। निश्चित तौर पर यह योजना बालिका सशक्तिकरण योजना के रूप में पूरे देश के लिए आईना रहा। पोशाक योजना भी अच्छी पहल रही। खासकर बिहार में लड़कियों की पढ़ाई के लिए जिस तरह से प्रोत्साहन योजनाओं की शुरुआत की। वह बिहार के लिए कम क्रांतिकारी नहीं रही। पंचायती राज व्यवस्था और नगर निकाय में महिला आरक्षण के साथ-साथ अति पिछड़ी जातियों को को दिया गया आरक्षण के साथ-साथ एकल पद पर भी आरक्षण की शुरुआत बिहार से हुई। बिहार नहीं पूरे देश में जातीय जनगणना कराकर जो ओबीसी के प्रति अपने संकल्प को प्रदर्शित किया है। वह आने वाले दिनों में अन्य राज्य और देश के लिए भी मील का पत्थर साबित होगी। खासकर महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के समय जिस तरह से संसद में ओबीसी और जातीय जनगणना का मामला उठा। वह बिहार के लिहाज से काम बड़ी उपलब्धि नहीं थी।

वैसे,जीविका भी महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में एक अच्छी पहल रही, वैसे ही जल जीवन हरियाली ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए एक अच्छा प्रयास रहा। इसी क्रम में हर घर बिजली और घर-घर नल जल भी देश का आईना बना। लेकिन इसमें व्यापक भ्रष्टाचार के कारण जमीनी सफलता वैसी नहीं मिली। सबसे ज्यादा राशि का बंदरबांट और  जमीनी स्तर पर योजना के मामले में सफलता नल जल योजना की रही। घर-घर बिजली योजना में भी व्यापक भ्रष्टाचार और गड़बड़ी व्याप्त होने के कारण अभी भी परेशानी बनी हुई है। जल जीवन हरियाली निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बड़ी सोच और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए एक ऐतिहासिक पहल है, लेकिन जमीनी स्तर पर अभी भी इस योजना में अधिकारियों पर बड़ी नकेल की जरूरत है।

जीविका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बेहद महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन लालफीता शाही के कारण गरीबों तक इसका सही ढंग से लाभ नहीं पहुंच रहा। कर्मचारियों जीविका दीदी के सांठगांठ से आर्थिक लेनदेन में बड़ी गड़बड़ी है। जगह-जगह कई बड़े घोटाले हैं। योजना में पारदर्शिता का घोर अभाव है। समूह से प्राप्त होने वाली राशि के ब्याज दर और बचत में कई गड़बड़ियां है। इसकी बैंकिंग प्रणाली को अगर सुदृढ़ कर दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के लिए बड़ी मददगार योजना हो सकती है। जिससे ग्रामीण क्षेत्र में फैल रहे बंधन बैंक जैसे माइक्रो फाइनेंसिंग कंपनियां और उसके ऊंचे ब्याज दर का शोषण रूक सकेगा। इस योजना को जमीनी स्तर पर मजबूत करने और सख्त पर्यवेक्षक की जगह अधिकारी मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए रोड मॉडल बनाने के तरफ ज्यादा ध्यान दें रहे। लिहाजा इसमें भ्रष्टाचार लगातार बढ़ रहा है। खासकर समूह का नेतृत्व करने वाली महिलाओं के शोषण का शिकार समूह की महिलाएं हो रही है।

निश्चित तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल से महिला सशक्तिकरण, बालिकाओं के सशक्तिकरण और कुछ जमीनी योजनाओं से देश को भी दिशा मिली है। लेकिन इसकी चर्चा देश दुनिया में जिस तरह से होनी चाहिए थी वह नहीं हो पा रही है। वैसे, इसका भी कारण है। नीतीश कुमार के साथ गठबंधन की सरकार की मजबूरी और उनके दल की राष्ट्रीय पहचान इतने वर्षों में भी नहीं बन पाना। यह सच है कि मुख्यमंत्री की सोच अच्छी रही लेकिन उसे जमीन पर सही ढंग से उतरने की उतनी अच्छी पहल नहीं हो सकी। जिसकी जरूरत थी। इसमें दोनों ही पक्ष का साथ मजबूती से नहीं मिल सका। भ्रष्टाचार के भारी पड़ जाने के कारण कई योजना बदनाम हो गई। एक अंतिम बात। भले ही, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की बात करते रहे लेकिन इस मामले में उनके साथ शायद ही कोई खड़े उतर सके।

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