कहां गए मोदी के गारंटी, जहां-जहां गए हार गए! अब उठ रहा है मंथन में यह भी सवाल, क्या खुफिया रिपोर्ट भी झूठा था
प्रभात कुमार
प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के लोकप्रियता और सरकार को लेकर रस की असहज हो रही है। पीएम मोदी के समर्थक मीडिया की अगर बात छोड़ दे तो इस समय की सबसे बड़ी खबर यही है कि आरएसएस के मुख्य पात्र पांचजन्य और अंग्रेजी के ऑर्गेनाइजर में रतन शारदा का जो लिख छपा है। वह साबित करता है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदी के बीच सब कुछ सहज नहीं चल रहा। इस लेख में भाजपा के 400 पर वाले नारे पर कटाक्ष किया गया है। कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी चमक में भाजपा डूबी रही सड़क पर खड़े लोगों की आवाज नहीं सुन सकी। लेख में भाजपा के सांसदों के हार का कारण बताया गया है कि वह अपने निर्वाचित स्थान पर बहुत कम दिखे और आम जनता के लिए उनसे मिलना संभव नहीं हो सका। इस लेख में रतन शारदा ने भाजपा की हर की समीक्षा की है। याद रहेगी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी 2004 में शाइनिंग इंडिया के नारे के कारण धराशाई हुई थी। जनता के मूड के आकलन और और और एनडीए के नेताओं के फील गुड का परिणाम रहा की अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री की हार हुई।
नदियों को आत्मसात कर महासमुंद बनने की दावा करने वाली पार्टी बीजेपी 2024 यह लोकसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत अकेला नहीं मिल सका है। 2014 के बाद यह पहला मौका है जब मोदी सरकार अपने गठबंधन के साथियों पर आश्रित है। इसका सबसे बड़ा कारण रहा कि मोदी की गारंटी नहीं चली। भाजपा की जगह हर जगह मोदी का प्रयोग लोगों को नहीं सुहाया। मोदी मैजिक को भी जनता ने इस तरह से इनकार कर दिया। शाइनिंग इंडिया को इनकार कर दिया था।
सबसे अजीबोगरीब बात तो यह रही कि जिस मोदी का डंका पूरी दुनिया में बजाने की बात हो रही थी। वह जनता की नजर में अब तक के सारे प्राइम मिनिस्टर की सूची में परिणाम की दृष्टि से दूसरे नंबर पर चले गए। सिर्फ चंद्रशेखर ही उनसे पीछे रह गए हैं। वाराणसी संसदीय क्षेत्र में सिर्फ 152000 से जीते हैं। चंद्रशेखर को छोड़कर इतने कम वोटो से जीतने वाले अन्य कोई प्राइम मिनिस्टर नहीं है।
मोदी की गारंटी को यह जनता का पहले जवाब है। जनतंत्र में जनता का फैसला ही सर्वोपरि होता है और वाराणसी की जनता ने जो फैसला सुनाया है। वह कुछ ऐसा ही है। दूसरी बात गुजरात के बाद सबसे भरोसे का प्रदेश परिणाम की दृष्टि से उत्तर प्रदेश ही माना जाता रहा है। यह भारत का सबसे बड़ा प्रदेश भी है और इसकी राजनीति की बढ़िया अहमियत भी है। यहां भाजपा सरकार का बुलडोजर चला।
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का कॉरिडोर बना भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में बहुप्रतिक्षित मंदिर मंदिर बना बना और रामलीला की स्थापना हुई। राज्य में विकास के लिए अन्य कार्य की भी हुए। फिर भी भाजपा 80 में से सिर्फ 33 सीट पर सिमट गई। यह 16 सीटों भाजपा बसपा के कारण जीती। इसके सारे आंकड़े प्रमाण है। वैसे उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज ने बसपा को खारिज कर दिया लेकिन इसके बावजूद वह अपने उम्मीदवारों के द्वारा इतना वोट काटने में सफल हो गई। जिससे भाजपा की जीत हो गई।
कारण है कि उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को लेकर यहां बहुत किरकिरी हो रही है। पीएम मोदी और सीएम योगी में शीत युद्ध की स्थिति है। वैसे, यह पूरा प्रकरण भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अंदरूनी मामला है। संभावना यह भी है कि इसी बहाने जनता की मिजाज को टटोलना चाह रही हो। फिर भी यह सत्य है कि मोदी की गारंटी के बावजूद जनता ने जहां-जहां मोदी की सभा हुई।परिणाम 2014 और 2019 की तरह नहीं दिखा। उत्तर प्रदेश हो या बिहार राजस्थान। राजस्थान जहां सबसे क्रांतिकारी भाषण पीएम मोदी ने दिया। वह सीट बीजेपी हार गई।
बिहार जहां आरा,बक्सर, सासाराम, काराकाट, औरंगाबाद, पाटलिपुत्र और पूर्णिया में एनडीए की हार हुई । आज काराकाट में उपेंद्र कुशवाहा अपनी हार को लेकर जदयू को घेरने का प्रयास कर रहे हैं। इसी संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार पवन सिंह बिना भाजपा से इस्तीफा दिए मैदान में कई दिनों तक बने रहें। उन्हें बाद में भाजपा से निकला भी गया तो एक साल के लिए। इसके बावजूद वह इसकी चर्चा नहीं कर रहे। हम सेकुलर के जीतन राम मांझी का कितना वोट ट्रांसफर हुआ इस पर कोई सवाल नहीं उठ रहा और भाजपा के वोट के मामले में तो चुप्पी। बनी हुई है। यह मामला कुछ इस तरहका है। जैसे समरथ को नहीं दोष गोसाई।
भले ही पीएम मोदी के समर्थक मीडिया के साथी मोदी 3 की बात कर रहे हैं लेकिन उनकी लोकप्रियता को लेकर अब संघ में ही घमासान है। फिर भी मोदी समर्थकों ने अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। मीडिया के साथ-साथ इसमें पूंजीपति और कुछ घराने भी है। वहीं संघ परिवार में मोदी से अधिक लोकप्रियता शिवराज चौहान और नितिन गडकरी की होने की चर्चा है। मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज चौहान तो 8 लाख से भी ज्यादा वोट से जीते हैं। वैसे इस बात को लेकर गृह मंत्री अमित शाह का भी दवा हो सकता है। उनके भी जीत का अंतर 8 लाख से ज्यादा है। इन तमाम लोगों में सब कुछ के बावजूद नितिन गडकरी का आम जनता ग्राफ सबसे ऊपर है। खासकर युवा भारत उनका दीवाना है।
अगर प्रधानमंत्री का चयन व्यक्तिगत उम्मीदवारी के आधार पर संभव होता तो नितिन गडकरी निश्चित तौर पर मोदी पर भारी पड़ते। इस रेस में शिवराज चौहान का होना भी तय था। एक बड़े राजनीतिक विश्लेषक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि यह सारी कवायद मोदी के खिलाफ आक्रोश को काम करने और जनता के मर्म पर मलहम लगाने की है। फिर भी इतना आता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जनता ने पीएम मोदी को नकारा है। कमजोर विपक्ष और कई पार्टियों में परिवारवाद के कारण मजबूती से लड़ाई संभव नहीं हो सकी। भ्रष्टाचार के बोल वाला के कारण इंडिया ब्लॉक को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका। वैसे,लड़ाई के लिए अभी भी काफी मौके हैं।

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