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गरीबों के नाराजगी के साथ है प्रकृति, भारत में भी पड़ेगी ईरान जैसी गर्मी

 

  • आकाश से बरस रहे हैं अंगारे, झुलस रहा है हिंदी पट्टी
  • 2 साल में 25 से 30 प्रतिशत कम हुई बरसात
  • कोरोना में मिला था न्याय, खुश की प्रकृति

प्रभात कुमार

इंडिया गर्मी के मामले में ईरान सहित गल्फ कंट्री के करीब पहुंच रहा है। भले ही यहां का टेंपरेचर 70 डिग्री को नहीं पर किया है लेकिन दुनिया के सबसे 10 गर्म शहरों की सूची में शुमार हो गया है। दिल्ली में बीते 24 में को 2:30 बजे के बाद कुछ इलाके का टेंपरेचर 52.4 डिग्री से अधिक होने की चर्चा है। भारत में कई जगहों पर 55 डिग्री से ऊपर तापमान की पहुंचने की चर्चा है। भारत का एक बड़ा हिस्सा गर्मी से झुलस रहा है। पश्चिम बंगाल की खाड़ी से आगे बढ़ा मानसून कमजोर पड़ गया है। दम तोड़ दिया है। अरब सागर से आगे बढ़ा मानसून इस बार भी राहत के साथ आगे बढ़ रहा है। मानसून की भी हिंदी पट्टी से खास नाराजगी है। कोई तीन-चार साल पहले जब पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में आई थी और भारत ही नहीं बिहार प्रकृति के न्याय का साक्षी बना था। क्या मौसम था और क्या बरसात।

खासतौर पर अगर जो 3 साल का बिहार के बारिश का अनुपात देखें तो इसमें 25 से 30 फ़ीसदी की कमी दिखती है। यह सरकार के जल, जंगल और हरियाली अभियान के बावजूद है। बिहार में 1 दिन में एक एक करोड़ पौधा लगाने का अभियान चलाया गया। मुजफ्फरपुर में तिरहुत प्रमंडल के एक आयुक्त एसएम राजू उन्होंने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में एक रिकॉर्ड दर्ज करने की कोशिश की थी। बिहार में सरकार की योजना चलती है- मनरेगा। इसमें भी पौधारोपण और जल, जंगल और हरियाली योजनाएं चलती है। इसके अतिरिक्त वन विभाग क्या अपना पौधारोपण का अभियान चलता है। इसके बावजूद यह गर्मी क्या बयान करती है। पौधारोपण को लेकर सरकार का अभियान और उसके आंकड़े सच हैं या तापमान का यह तांडव सच है। आखिर कहीं तो भ्रष्टाचार है। झूठ है। बेईमानी है।

वैसे, यह सच है कि इन तमाम अभियानों के कारण एक सर्वे के अनुसार बिहार में वन क्षेत्र दो से तीन तीन प्रतिशत बढ़ा है। कहा जा रहा है कि अगर यह प्रयास नहीं होता तो बिहार की स्थिति दिल्ली से भी बदतर होती। चलिए इसके लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार धन्यवाद के पात्र हैं। वह बेहतर सोचते हैं और कोशिश भी करते हैं। फिर भी उनके सिस्टम में जो भ्रष्टाचार है।

किसी आरटीआई के एक्टिविस्ट को सूचना के अधिकार के माध्यम से उजागर करना चाहिए। किसी खोजी संस्थान को इस पर अध्ययन करना चाहिए कि हरियाली के नाम पर लूट कहां कहां है। किसके- किसके जेब में कितनी राशि जा रही है। जमीन पर क्या है और कागज पर क्या है। मैं साफ कर देना चाहता हूं कि देश-विदेश की यात्रा करने वाले और जल जीवन और हरियाली पर लच्छेदार भाषण करने वाले डुगडुगी बजाकर और थाली पिटकर धरना देने वाले संगठन इस मिशन को मुकाम तक नहीं पहुंचा सकते।

मैंने एक राष्ट्रीय दैनिक के लिए दो दशकों से अधिक समय तक ग्रामीण विकास और उसकी योजनाओं का रिपोर्टिंग किया है। योजनाओं के सच को काफी निकटता से देखा है।लूट-खसोट

और भ्रष्टाचार को भी उजागर करने की कोशिश की है। फूड फॉर वर्क से लेकर मनरेगा तक की योजना को गरीबों के दो जून की रोटी योजनाओं के घोटाले को भी उजागर किया है। कार्रवाई का कार्य सरकार से लेकर कोर्ट तक का रहा। फिर भी अपने दायित्व को निभाया। एक साल के लिए मुझे ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं के मॉनिटरिंग के लिए केंद्र स्तर पर बने सोशल ऑडिट की टीम में एक सामाजिक कार्यकर्ता के प्रतिनिधि के तौर पर काम करने का अनुभव मिला। वहां मैं जब सोशल ऑडिट के एजेंसी और उसके रिपोर्ट पर सवाल उठाया और अधिकारियों से इस पर चर्चा की। ग्रामीण विकास विभाग के बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार तक को इसकी जानकारी दी। उसके बाद से अब मालूम नहीं कि केंद्र सरकार सोशल ऑडिट कर रही है या उस सवाल उठाने वाले लोगों को अलग कर दिया गया।

इस मौके पर एक बात बताना चाहता हूं कि 2004 के यूपीए की सरकार में मुजफ्फरपुर के ही वैशाली लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित समाजवादी नेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह राजद की टिकट पर जीते थे। उन्हें अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बनने का अवसर मिला और उन्होंने खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन के लिए केंद्र स्तर पर चल रही कई योजनाओं को मिलाकर नरेगा की शुरुआत की जो बाद में मनरेगा के नाम से सामने आया। उन्होंने जो काम किया। उसकी चर्चा देश में नहीं नहीं विदेश में भी हुई। वह मनरेगा मैन के नाम से चर्चित हुए लेकिन इसी दौरान उनसे एक बड़ी भूल भी हुई। जिस भूल के कारण किस जिले में भ्रष्टाचार की शक्ति मजबूत हुई और वह इतनी मजबूत हुई थी उनको उसी से हारना पड़ा।

निश्चित तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेहतर सोचते हैं स्वप्न दृष्ट भी है। योजना जल जीवन हरियाली निश्चित तौर पर देश और देश के बाहर भी काफी चर्चा में रही है। भारत में इस योजना को अपनाया जा रहा है। भारत सरकार ने भी हल्के फुल्के परिवर्तन के साथ इस योजना को लागू किया है। योजना ग्लोबल वार्मिंग और और पॉल्यूशन की बढ़ती समस्या को रोकने में मिल का पत्थर साबित हो सकती है। फिर भी सबसे दुखद यह है कि सिस्टम के भ्रष्टाचार में सारीअच्छी चीजों को दीमक की तरह चाट लिया है।

जमीन से लेकर आकाश तक का यह भ्रष्टाचार किसी भी प्राकृतिक आपदा बचाने के लिए मुहिम में सबसे बड़ी बाधा है। यह सच है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार की कोई आंच अब तक नहीं आई है। उनके पास इसके कारण भी मौजूद नहीं है। वह घर परिवार और समाज से इस मामले में अलग हैं लेकिन शेष की स्थिति किसी से छुपी नहीं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सारी उपलब्धियां जो एक मील का पत्थर है। फिर भी उनके आसपास लोगों से लेकर सिस्टम के अंतिम आदमी के कारण उन्हें इस स्थिति में पहुंचा दिया है।


(लेखक प्रभात कुमार राजनीतिक विश्लेषक एवं बिहार में हिंदुस्तान हिंदी दैनिक के सीनियर रिपोर्टर रहे हैं)

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