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गांधी, लोहिया व जेपी आश्चर्य से कम नहीं

- प्रभात कुमार

गांधी, लोहिया व जेपी आश्चर्य से कम नहीं


11 अक्टूबर 1902 को सारण जिले के सिताबदियारा गांव में संपूर्ण क्रांति के नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण जन्म हुआ था, जिन्होंने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के कविता के इन पंक्तियों से-

"सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, 

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; 

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, 

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है...." 

इंदिरा सरकार को चुनौती दी।1974 की संपूर्ण क्रांति से कांग्रेस हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ा।1977 में देश में एक नए सूर्य का उदय हुआ और शासन- सत्ता बदल गई। इस क्रांति का शंखनाद बिहार की राजधानी पटना स्थित गांधी मैदान से हुई। वह तारीख थी 5 जून 1975। जिसने राष्ट्रकवि दिनकर के पंक्तियों को सच कर दिखाया।

लोकनायक जेपी ने अपनी प्यारी बिटिया इंदू ( पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी) की  कमर ऐसी तोड़ी कि आज भी बिहार में कांग्रेस की वापसी नहीं हो सकी है। यह लोकनायक का शाप है या अभिशाप। वह तो ईश्वर जाने लेकिन एक बार फिर से देश में लोकतंत्र को लेकर जो चिंताएं दिख रही है। ऐसे में लोकनायक की याद उनके जन्म के 122 वर्ष बाद भी आमजनों में महसूस की जा रही है। देश किस रास्ते पर जा रहा है। कंपनी राज की वापसी हो रही है या राजनीति में जिस तरह से पूंजीपतियों का वर्चस्व बढ़ रहा है। देश का संविधान, देश के सारे स्तंभ और धर्म की आड़ स्वार्थपूर्ण राजनीति को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। यह कहने में कोई गुरेज नहीं की पत्रकारिता की हालत अंग्रेजी काल से भी दयनीय है। अगर सोशल प्लेटफॉर्म और मीडिया को छोड़ दें तो गिनी-चुनी उम्मीदें भी खत्म हो रही है। अब तो सोशल मीडिया को भी जिस तरह से अपने लिए राजनेता हथियार बना रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब यह भी भरोसा से बाहर हो जाएगा।

न्यायपालिका को लेकर आजादी से लेकर अब तक लगातार सवाल उठाते रहे हैं। वर्तमान चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया धनञ्जय यशवंत चंद्रचूड़ जो अगले महीने अब रिटायर होने वाले हैं। उनका जो कार्यकाल रहा और उनके जो खट्टे-मीठे अनुभव रहे। कभी नरम- कभी गरम। सब कुछ विदित रहा है। कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के बारे में तो टिप्पणी भी उचित नहीं है। यह अलग बात है कि जनता बहुत ही जल्दी चीजों को भूल जाती है। उन्हें उलझने और भड़काने के लिए सत्ता के पास कई मसाले और मुद्दे होते हैं। धर्म तो अपने आप में एक ऐसा बड़ा मुद्दा है। जिसकी तुलना हम महा समुद्र से कर सकते हैं। जहां से संभवतः किसी के लिए उबर पाना बहुत ही कठिन होता है। वह इस्लाम हो या हिंदु अथवा अन्य धर्म। उसमें भी अगर जाति की चासनी हो तो इसकी कल्पना खुद की जा सकती है।

देश में जो भी कुछ हो रहा है। वह गांधी,लोहिया,जयप्रकाश के लिए आश्चर्य से कम नहीं। फिर भी देश है तो दुनिया का असर पड़ेगा। पूरी दुनिया में पूंजीतंत्र हावी है। अगर हम थोड़ा इससे अलग हटकर देखें तो दूसरी तरफ मजहबी तकरार भी देखने इजराइल-फिलिस्तीन- ईरान और इसके पीछे खड़ी दुनिया को भी देखा जा सकता है। रूस और यूक्रेन का जारी युद्ध भी अपने आप में नायब है।

आज देश में एक तरफ जहां धर्म की सत्ता को भी घत्ता बताते हुए अपनी सुख- सुविधा और कुर्सी के लिए जो खेल चल रहा है। दूसरी तरफ जाति के नाम पर भी यह खेल परिवार और वंश के लिए जिस तरह से जारी है। यह लोकनायक जयप्रकाश नारायण की आत्मा को कितना  झकझोड़ता होगा। इसकी कल्पना की जा सकती है। आज उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश प्रसाद यादव जो पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के पुत्र हैं। उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर अपने प्रदेश के सरकार के रवैया से क्षुब्ध होकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भाजपा से अलग होने की बात की है। नैतिकता और देश की जरूरत के हिसाब से तो यह उचित प्रतीत होता है लेकिन जिस तरह से कुछ राज्यों में राजनीति परिवार की पेटी में बंद हो गई है और देश के नेता और विपक्ष के चेहरा राहुल गांधी लगातार देश की अखंडता, संविधान और शासन के अराजकता के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं। वहीं अंतिम उम्मीद भी हैं। फिर भी उनकी पार्टी में जिस तरह से पूरे सिस्टम में दीमक लगा है, संगठन में भ्रष्टाचार है। अब जिन स्तंभों पर कांग्रेस की इमारत खड़ी है। वह या तो परिवारवाद का चेहरा है। अथवा ऐसे चेहरे हैं जिसे जनता ने अस्वीकार कर दिया है। इनमें अनुभव, बौद्धिक क्षमता, नेतृत्व के प्रति समर्पण और क्षेत्रीय राजनीति की समझ भी नहीं। इसका एक छोटा सा उदाहरण वेणुगोपाल हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अब उम्र के उसे पड़ाव पर हैं और दक्षिण भारतीय होने के कारण उत्तर में अपनी पैठ में नाकामयाब हैं। कांग्रेस ने प्रदेश में भी ऐसे लोगों को कमान दे रखा है। जो अपनी कुर्सी और अपने परिवार से बहुत हद तक उठकर नहीं सोच सकते। बिहार इसका एक छोटा सा उदाहरण है। 

यह सच है कि कांग्रेस के लिए सत्ता में वापसी का मंत्र विरोधी दलों से तालमेल ही हो सकता है लेकिन क्षेत्रीय दलों के भरोसे वह चुनाव नहीं जीत सकती।

किसी जमाने में जो लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर इस देश के लोकतंत्र और संविधान को बचाने का दायित्व था। वही दायित्व लगभग आज विरोधी दल के नेता राहुल गांधी पर है लेकिन उनके सामने चारों तरफ कुएं और खाई की स्थिति है। ऐसे में असत्य पर सत्य की जीत स्थापित करना बड़ी कठिन चुनौती है। यह राम रावण संघर्ष से कम नहीं। महिषासुर संग्राम से भी कठिन है आज की तारीख में। 

लोकनायक जयप्रकाश नारायण को सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि के साथ दशहरा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ इस मौके पर रतन टाटा जैसे महादानी उद्योगपति और इस देश के वर्तमान उद्योगपति पर भी विचार जरूरी है।

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