- जननायक कर्पूरी ठाकुर की 101वीं जयंती पर विशेष
© प्रभात कुमार
बिहार में जननायक कर्पूरी ठाकुर, पिछड़ों, दलित और अकलियतों के मसीहा लालू प्रसाद यादव और वर्तमान सीएम नीतीश कुमार को बरसों तक याद किए जाएंगे। वैसे पिछड़ों,दलित और अकलियतों के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वर्तमान में छवि कुछ अलग है। सत्ता में होने के कारण यह इनकंबेंसी और राजनीतिक आघात- प्रतिघात का होना भी स्वाभाविक है। जब हम किसी भी राजनेता को लेकर चिंतन करते हैं, हमारी अपेक्षाएं बहुत अधिक होती है और हम उसे नेता के सत्ता के लिए मजबूरियों को नजरअंदाज कर देते हैं। फिर भी इन दिनों एक अजीब स्थिति है कि जो लोग लगातार आलोचना करते नहीं करते थे। वह क्यों मेहरबान हैं।अचानक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की समालोचना करने वाले लोगों से क्यों नाराज हैं।
यह सच है कि सत्ता की मलाई में भागीदारी नहीं होने का गुस्सा हमारे भीतर स्वाभाविक तौर पर होता है। जैसा वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराजगी व्यक्तिगत तौर पर मेरी भी है। मेरे मन में भी गुस्सा है। क्षोभ है, विद्रोह है। सच तो यह है कि मैं भी अपनी जगह सही हूं और वह भी अपनी जगह मजबूर हैं। सच्चाई यह भी है कि सीएम नीतीश कुमार को मिली कुर्सी में एक बड़ा हिस्सा है। जिन लोगों का है। अमृत मंथन के बाद मिले अमृत पर जिस तरह से देवताओं का अधिकार रहा। यह अधिकार उनका है। अपने हिस्से विष सिवाय कुछ पाने की इच्छा अपने नायक के लिए खतरा से अधिक नहीं। कमोबेश यह स्थिति जननायक कर्पूरी ठाकुर के जमाने में भी थी। यही कारण रहा होगा कि जैसा कि उनकी जीवनी में लिखा है। उन्होंने अपने घर नौकरी मांगने आए एक रिश्तेदार को ₹100 निकाल कर दिया और अपना परंपरागत पेशा करने का सुझाव दिया।
आज जननायक कर्पूरी ठाकुर 101वीं जयंती है। उनको नमन करते हुए यह आलेख में लिख रहा हूं। वैसे, जननायक कर्पूरी ठाकुर को गुजरे हुए भी अब 36 साल हो चुके हैं। फिर भी कुछ बचपन की धुंधली यादें हैं और एक आदर्श राजनेता के रूप में मेरे जेहन में उनके सिवाय कोई दूसरा नाम नहीं है। वह मेरे पिता के मित्र और मेरे लिए एक अभिभावक से अधिक नहीं थे। फिर भी आज की तारीख में उनकी तरह कोई भी दूसरा चेहरा तलाश ने की कोशिश करता हूं, तो वह नहीं दिखता है।
सच तो यह है कि आजाद भारत में बिहार जैसे पिछड़े राज्य में कर्पूरी ठाकुर जैसे पिछड़ों के नेता होना उन दिनों एक बड़ी बात थी। आज उनके ज्येष्ठ पुत्र रामनाथ ठाकुर जो केंद्र सरकार में वर्तमान में केंद्रीय मंत्री भी है। उनके जैसा नेता होना।आज सामान्य बात है। सच तो यह है कि लालू प्रसाद यादव हो या नीतीश कुमार उनकी तुलना जननायक कर्पूरी ठाकुर से करना एक बड़ी भूल हो सकती है। यही स्थिति उनके तथाकथित शिष्य होने का दावा करने वाले तमाम नेताओं के बारे में भी संभव है। संभव है कुछ अपवाद हो सकता है। मैं कुछ तथ्यों की चर्चा कर आगे बढ़ना चाहता हूं। मुझे नहीं मालूम क्या ऐसा इस देश में कौन सा नेता हुआ। जिसने अपने नेता और प्रधानमंत्री से यह कहा हो कि जब तक गरीबों का घर नहीं बनेगा। तब तक उनकी चौखट ऊंची नहीं होगी।
मालूम हो कि यह वाक्य उन्होंने चौधरी चरण सिंह को तब कहा था,जब वह इस देश के प्रधानमंत्री थे और उनके पितौझिया स्थित आवास पर आए थे। यह वही व्यक्ति है। जिसकी कपड़े के मैल और दुर्गंध से लोकनायक जयप्रकाश नारायण काफी नाराज हो जाते थे। एक बार मुजफ्फरपुर में ही जब वह उनसे मिलने आए। पहले अपने कपड़े साफ किया और फिर उनसे मिलने गए। यह बात नवभारत टाइम्स में पत्रकार रहे प्रमोद कुमार बताते हैं। वह यह भी बताते हैं कि एक आज के राजनेताओं की मित्रता है और एक कर्पूरी के जवाने की मित्रता थी। अपने समाजवादी मित्र रामकरण सहनी की पुत्री की शादी में हिस्सा लेने के लिए मुजफ्फरपुर के मुसहरी की बुघनगरा गांव आधी रात में पहुंचे। तब यही इलाका बाढ़ में डूबा हुआ था और उनके घर तक जाना बहुत ही कठिन था। तब वह बिहार के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने नरौली में ही अपनी जीप और एस्कॉर्ट सहित सारे कर्मचारियों को मेन रोड पर ही छोड़ दिया और एक ग्रामीण की मदद से एक लालटेन और एक लाठी के सहारे रामकरण बाबू के घर तक पहुंचे। यही नहीं शादी में रामकरण बाबू के व्यस्त होने के कारण थके हुए मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर वहां घर के बाहर पड़ी एक चारपाई पर बिना किसी चादर और तकिया के ही सो गए। अपना चेहरा धोती से ढक लिया और सुबह जब उनकी खोज हुई तो इस हालत में देखकर सारे लोग चकित रह गए। क्या आज ऐसे किसी नेता की कल्पना की जा सकती है। उनके काफी करीबी रहे समाजवादी नेता मंगनी लाल मंडल जी बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जी जब मुख्यमंत्री थे और उनके आवास में कई बार ऐसा होता था कि क्षेत्र पर से आए लोग उनके बिस्तर पर ही सो जाते थे और वह अपने कमरे में नीचे दरी डालकर सो जाते और फिर सुबह उठकर तैयार होकर कार्यालय भी चले जाते। एक घटना की और मैं चर्चा करना चाहता हूं। जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने और उनके मंत्रिमंडल में शामिल पूरन चंद्र जी ने मंत्रियों के लिए नई जीप के खरीद का प्रस्ताव दिया तो वह भड़क गए। जिन्हें मकान बनाने के लिए चंदा कर पैसा दिया गया तो स्कूल खोल दिया। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने जब उनके लिए कैद होती है और कुर्ता भेजा, उसे अपने साथियों बांट दिया।
अंत में एक घटना की चर्चा कर मैं अपने मूल विषय की तरफ लौटना चाहता हूं। हम लोगों का निवास समस्तीपुर में मथुरापुर में था और एक दिन कर्पूरी ठाकुर जी जब मेरे डेरा पर आधी रात में एक रिक्शा से पहुंचे। तब उनके लिए जो खाना आया। उसे उन्होंने पहले रिक्शा चालक को खिला दिया। फिर मेरे पिताजी से कहा डाक बाबू यह व्यक्ति तीन दिन से कुछ नहीं खाया था। जब ऐसी बात उसने बताई है तो फिर कैसे मैं खा सकता था। ऐसा व्यक्ति मेरी दृष्टि में कोई महामानव ही हो सकता था। साधारण व्यक्ति तो कतई नहीं। मैं बचपन में उन्हें मुख्यमंत्री बनने के बाद बंद जीप पर पिताजी से मिलने आते भी देखा और दूसरे दिन मुख्यमंत्री से हटते ही फिर रिक्शा की सवारी करते हुए भी देखा। आज एक मुखिया को भी स्कॉर्पियो से नीचे कुछ नहीं चाहिए। ऐसे में व्यक्तित्व के तौर पर इनकी तुलना न पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से हो सकती है और न वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हो सकती है।
एक यात्रा के रूप में अगर देखे तो यह तीनों नेता एक अलग-अलग पड़ाव पर दिखते हैं। मेरी दृष्टि में कर्पूरी ठाकुर ने जो सबसे बड़ी पिछड़ों को ताकत दी। उसमें सबसे महत्वपूर्ण पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद निःशुल्क शिक्षा थी। दूसरी बड़ी बात अंग्रेजी की बाध्यता को समाप्त किया जाना था और तीसरी महत्वपूर्ण बात मुंगेरीलाल कमीशन के आधार पर पिछड़ों को आरक्षण था। कर्पूरी जी को वह दिन याद था, जब मैट्रिक पास करने के बाद उनके पिता गोकुल ठाकुर गांव के सामंत के घर उन्हें लेकर गए थे सामंत ने कर्पूरी जी से पैर दबाने के लिए कहा था। यह टिस कर्पूरी जी के दिल पर अंतिम काल तक रही होगी। 1978 में जब पिछड़ा आरक्षण बिहार में लागू हुआ और तब जो शब्द उनके लिए इसके विरोध में आंदोलन के दौरान सुनने को मिला। वह शायद उनके पुत्र रामनाथ ठाकुर जी को याद है या नहीं पता नहीं लेकिन वह सामंती सोच और विचार आज भी हमारे समाज में मौजूद है।
आज थोड़ी देर पहले मुझे पता चला कि हरियाणा सरकार ने अनुसूचित जाति के सूची में शामिल तीन जातियों के नाम को हटाने के लिए एक पत्र भारत सरकार को लिखा है। जिसमें उल्लेख किया गया है कि यह तीनों जातियों का नाम एक गाली की तरह है। चूड़ा और भंगी जो इस सूची में दूसरे स्थान पर है और मोची जो नवें स्थान पर है। इसमें सुधार के लिए आग्रह किया है। फैसला निश्चित तौर पर स्वागत योग्य और एक सराहनीय कदम है।
लेकिन हमारा समाज आज भी उसी सामंती सोच और मानसिकता के दौर में बना हुआ है। जहां आज भी मालिश के लिए नाई की याद आती है। जब किसी का माथा दुखता है तो मालिश के लिए कर्पूरी ठाकुर का ही समाज हमारे बीच होता है और हम सब आज भी इसके आदि हैं। आज सबके साथ और सबके विकास के नारे के बीच हमारे समाज का सौभाग्य है या अभिशाप। इस सवाल का जवाब तो जरूरी है। यह कहां तक न्याय संगत है। जाति सूचक शब्द से विशेष समाज के किसी भी जाति का अभिनंदन कब तक होता रहेगा। सवाल सामंतों के लिए जितना बड़ा है उतना ही नाव सामंतों के लिए भी।
पिछड़ों के मसीहा लालू प्रसाद यादव से नफरत का एक बड़ा कारण यह भी है कि उन्होंने पिछड़ा, अति पिछड़ा, अकलियतों को जुबान दी। स्वाभिमान दिया। यह और बात है कि अब माई की जगह बाप- बात की भी बात हो रही है। जमाना अब लालू जी का नहीं तेजस्वी जी का है। फिर भी लालू प्रसाद यादव ने जो आवाज दी है। वह बरसों-बरसों तक याद रहेगा। सत्ता का संघर्ष अपनी जगह है। सामाजिक संघर्ष का अपना अलग ही महत्व है। जननायक कर्पूरी ठाकुर के बाद पिछड़ों के लिए संघर्ष करने वाले बिहार के लालू प्रसाद यादव दूसरे सबसे बड़े नेता हैं और आज जिसे पलटू राम और कुर्सी कुमार कह कर कुछ लोग खिल्ली उड़ाते हैं। इसी कड़ी में नीतीश कुमार तीसरे सबसे बड़े नेता है। उन्होंने कर्पूरी के सपनों को जमीन पर उतारा है। जो ताकत अति पिछड़ों को कर्पूरी जी अपने जीवन काल में नहीं दिला सके। उसे हर गांव में हर पंचायत में ऊंची कुर्सी दिलाकर तो कहीं किसी किसी शहर का प्रथम नागरिक तक बनवाकर जो ताकत दी है। भले ही उसका एहसास आज नहीं हो लेकिन यह भी बरसो बरसो तक याद किया जाएगा। आज की राजनीति कि अगर चर्चा करें और बिहार की बात करें तो हर पार्टी हर नेता का अगर ध्यान आता पिछड़ा वोट बैंक पर है। कहीं ना कहीं इसके पीछे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कि वह सोच और उनका कार्य है। यह विषय बहुत गंभीर और लंबा है। इसे एक लेख में समाहित करना संभव नहीं। फिर भी मैं इस बात के साथ जननायक कर्पूरी ठाकुर को नमन करता हूं कि लोकनायक या जननायक तो कोई एक होगा लेकिन भारत रत्न कई हो सकते हैं।
(लेखक प्रभात कुमार लोकवार्ता न्यूज के संपादक हैं। उन्होंने दैनिक हिन्दुस्तान के साथ लंबे समय तक जुड़ कर पत्रकारिता की है।)
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