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प्रयागराज की घटना पर मौन और अमावस का दिन है आज

- प्रभात कुमार

प्रयागराज की घटना पर मौन और अमावस का दिन है आज


मौन और अमावस शब्द से ही बना है- मौनी अमावस। अगर शास्त्र और पुराण की बात करें तो जी अमावस को मौन धारण किया जाए। वही मौनी अमावस्या है। इलाहाबाद जो प्रयागराज है। जहां त्रिवेणी गंगा जमुना सरस्वती का संगम है। क्या वही मौन रहकर गंगा में डुबकी लगाने से  अमृत स्नान संभव है। जैसी की खबरें आ रही है और 40 मौत और महा भगदड़ के बाद अब अमृत स्नान घर पर भी करने की सलाह दी जा रही है। यह मैं नहीं। धर्म के ही कुछ बड़े संत यह सलाह दे रहे हैं। काश, सलाह अगर दो दिन पहले दिया गया होता तो अमृत स्नान के नाम पर इतनी बड़ी घटना नहीं होती। 

आज भारत में धर्म की राजनीति अपने चरम शिखर पर है। हर आइना सनातनियों के लिए एकता और अखंडता के लिए आस्था का महासंगम है। जिस्म डुबकी लगाकर हर कोई अपने पाप से मुक्त हो सकता है। मुझे मालूम नहीं योगीराज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सम सुरक्षित और सुव्यवस्थित महाकुंभ 2025 प्रयागराज में जो घटना हुई है। तो कांग्रेस के राज्य में भी होता रहा है। दिव्या भाव डिजिटल इस महाकुंभ में जो आस्था और आधुनिकता का भी महासंगम था जहां अमृत स्नान के लिए समूचा हिंदू संसार उतर आया। 

मौनी अमावस्या के दिन की घटना उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री संजय निषाद के अनुसार एक छोटी घटना हो सकती है। 40 लोगों की मौत भले ही हृदय विदारक और सरकार के को व्यवस्था और कुप्रबंधन को सवालों के दायरे में नहीं खड़ा करती हो। देश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बड़बोलेपन एक छोटा सा उदाहरण नहीं हो लेकिन यह घटना कितनी हृदय विदारक और दुखद है। यह मेरी समझदारी और मेरा विचार है। धर्म और आस्था के साथ-साथ राजनीति में डूबकी लगाने वाले लोगों की धारणा अलग हो सकती है। वैसे से अगर यह कांग्रेस शासित प्रदेश में यह घटना घटी होती तो मीडिया का कोहराम संभव था। तब इस देश के अधिकांश संपादक शायद इस बदइंतजामी शायद कुछ कह पाते। धर्म,राजनीति और उन्माद की उन्माद की बातें होती। अभी तो अधिकांश की ओठ सीले हैं।

धर्म ने अपने आस्था के चादर में इस तरह से लोगों को लपेट लिया है कि अभी-अभी एक सज्जन मेरे बड़े भाई समान का फोन आया और मैंने कहा कि आज एक बड़ी घटना हो गई है। उन्होंने कहा कि कौन सी? इतनी बड़ी घटना और फिर भी कौन सी घटना के बारे में अगर कोई पूछ रहा हो तो संवेदना के उसे स्तर के बारे में सोचा जा सकता है। कितने लोगों को धर्म के नाम पर आंखों पर काली पट्टी डाल दी है। मैंने पहले सोचा था कि इस घटना पर मौन रहूं और इस अमावस के चादर को यथावत छोड़ दूं लेकिन मुझे ऐसा लगा कि हिंदू होने का मतलब यह नहीं की मानवता को भी तिलांजलि दे दूं।

देश में मानवता यही बची है कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद जैसे प्रतीत हो रहा है कि देश में कोई घटना हुई ही नहीं। कभी तो वोट के लिए महारैली नहीं रुकी। कुंभ और राजनीति दोनों अपनी-अपनी जगह जारी रहा। जैसी सूचना मिल रही है और जिस तरह की कुछ खबरें भी आई है। करोड़ों लोग रास्ते में फंसे हैं 2 लाख से ज्यादा गाड़ियां  फंसी है।

मैं तो बिहार की राजधानी पटना में जाने के क्रम में 5 घंटे राज्य सरकार की  बदइंतजामी और डीजीपी विनय कुमार जी के पुलिस प्रशासन और व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद में विश्वास करने वाला व्यक्ति रहा लेकिन जब मैं वैशाली जिले से लेकर पटना में प्रवेश कर गया और मुझे एक सिपाही का जवान भी नहीं मिला। कहीं मेरे विश्वास और आस्था को बड़ा धक्का लगा। एक पत्रकार होने के नाते कई पदाधिकारी से बात की मुख्यमंत्री आवास तक को सूचना दिए और अपने अखबारों के संपादकों से भी विनती की लेकिन निराशा के सिवा कुछ नहीं हासिल हुआ। मैं विद्यार्थी जीवन से लेकर जिस दल और नेता के प्रति आस्था बन रहा। पटना की छोटी सी घटना ने इस तरह मुझे दिला दिया कि मैंने कई लोगों से कहा-बिहार में कोई सरकार है या नहीं। मुझे उसे समय और भी बड़ा धक्का लगा जब पटना के मुख्य डाकघर चौराहा पर हिंदुस्तान कार्यालय के पास ही एक ट्रैफिक पुलिस के जवान ने जो मेरे साथ सलूक किया और जिस तरह से धमकी भरे लहजे में डिजिटल चालान काटने की धमकी दी। मेरा शेष बचा पुलिस को लेकर विश्वास भी धराशाई हो गया और मैंने रिश्वत देकर आगे बढ़ने का फैसला लिया। 

मैं इसी हिंदुस्तान अखबार का एक पत्रकार रहा हूं। जो रिटायर होने के बाद अपने स्टेट एडिटर से मिलने पटना हायर पेंशन के मामले में पहुंचा था लेकिन जिस तरह से उन्होंने मिलने से बचने का प्रयास किया। मैं अपनी बात और यात्रा के परेशानियों को भी नहीं शेयर कर सका। मैं भी मौनी अमावस्या से एक दिन पहले आस्था और विश्वास के महाकुंभ के निराशा में गोते लगाकर देर रात महाजाम से मुक्ति ना उम्मीद होकर छपरा के रास्ते मुजफ्फरपुर लौटा और देर रात उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री संजय निषाद के अनुसार एक छोटी सी घटना जो प्रयागराज में हुई। उससे अवगत हुआ। तब बिहार की घटना मेरे लिए उत्तर प्रदेश के सामने बौनी पड़ गई थी।

(लेखक प्रभात कुमार 'लोकवार्ता न्यूज' यूट्यूब चैनल व वेब पोर्टल के संपादक हैं और दैनिक हिन्दुस्तान के साथ जुड़ कर लंबे समय तक पत्रकारिता की है।)



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