- प्रभात कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार की शुरुआत बिहार में न्याय के साथ विकास को धूरी मानकर हुई थी। कानून का राज और कार्यकर्ताओं का मान-सम्मान लक्ष्य था। इस लक्ष्य के साथ जो बिहार में एनडीए के मंगलराज की शुरुआत हुई, उसने बिहार के आम-आवाम को राहत प्रदान नहीं कर सका। हालांकि, पांच सालों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश भर में बिहार को लेकर एक मिसाल जरूर कायम की। अपने विकास कार्यों और सख्त कानून-व्यवस्था के कारण पूरे बिहार के बारे में देश और दुनिया की धारणा बदलकर रख दी। इसके कारण नीतीश कुमार अंतर्राष्ट्रीय मैगजीन 'टाइम' के कवर पेज पर छपे और बिहार में अप्रत्याशित परिवर्तन को लेकर स्टोरी भी छापी। नीतीश कुमार की सर्वत्र प्रशंसा हुई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कुशल नेतृत्व और बिहार में विकास को लेकर नई इबादत लिखे जाने के कारण 2010 के चुनाव में अप्रत्याशित सफलता भी मिली। तब पूरे देश में विकास को लेकर सिर्फ दो मॉडल थे। एक बिहार का मॉडल था और दूसरा गुजरात का। बिहार का मॉडल नीतीश कुमार का था और गुजरात का मॉडल वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का था। गुजरात जहां एक विकसित राज्य पहले से था। वहीं बिहार इस दिशा में कदम उठाने वाला राज्य बना।इसी का परिणाम था कि बिहार देशभर में नीतीश कुमार के कारण आज एक विकास का मॉडल है, जो बीमारू राज्यों के लिए एक प्रेरणा भी है। अगर इस देश का अन्य राज्य इसका अनुकरण करें तो, वह भी विकास की नई इबादत लिख सकता है। नीतीश कुमार के शासनकाल में विकास के क्षेत्र में कई मील के पत्थर स्थापित किए गए। जिसकी चर्चा वॉशिंगटन पोस्ट से लेकर विदेश के कई प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में हुई। जैसे- बालिकाओं के लिए शुरू की गई साइकिल योजना के कारण उन्हें पंख लग गया। पत्ता चुनने वाली, गोबर पाथने वाली, बकरी चराने वाली और घर के कामकाज में व्यस्त रहने वाली लाखों लड़कियों की किस्मत बदल गई।
बालिकाओं के सशक्तीकरण के साथ-साथ महिलाओं के सशक्तिकरण के मामले में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में एक मील का पत्थर स्थापित किया। खासकर पंचायतीराज और नगर निकाय में महिलाओं को आरक्षण देकर उनकी भागीदारी को सुनिश्चित किया। पिछड़ी जाति को को ही नहीं अति पिछड़े और महादलित को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए जो कदम उठाए। वही आज भी चुनाव में नीतीश कुमार के पक्ष में जिन की तरह सामने आता है। 2024 लोकसभा का परिणाम इसका एक मिसाल है। राजनीति के धुरंधर और विश्लेषक का अनुमान था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव परिणाम के मामले में भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल के मुकाबले कमजोर साबित होंगे लेकिन परिणाम इसके विपरीत रहा। यह एक नीतीश कुमार के इकबाल का एक छोटा सा उदाहरण है। जिसने भारतीय जनता पार्टी को भी दूसरे नंबर पर भेज दिया। यही नहीं नीतीश कुमार के विराट हृदय का एक बड़ा परिचय 2024 के लोकसभा चुनाव में लोजपा का भी परिणाम है। जिसने शत प्रतिशत सफलता अर्जित की लेकिन यह नीतीश कुमार के बदौलत ही संभव हो सका। मालूम हो कि जिस चिराग पासवान के कारण बिहार में नीतीश कुमार तीसरे स्थान पर 2020 के चुनाव पर जाने के लिए विवश हो गए। इसके बावजूद उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन धर्म का अनुपालन किया।
बिहार में सड़क, बिजली, पानी के साथ-साथ जल जीवन हरियाली जैसी एनी को योजनाएं देश में चर्चा का विषय है। केंद्र सरकार के तमाम कोशिशें के बावजूद आज उत्तर प्रदेश बिहार से एक कई मामलों में अभी भी पीछे खड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिहार की कई योजनाओं का अनुकरण किया है। जीविका से आजीविका तक की कहानी सबके सामने है।
आज भी बिहार में विकास के लिए हर संभव कोशिश जारी है। तमाम आप और प्रत्यारोप के बावजूद बिहार पूरे देश में अपने कामकाज के बदौलत लगातार मिसाल बनता जा रहा है।
वहीं दूसरी तरफ बिहार में हालात थोड़े बदले हैं। कानून का राज और न्याय के साथ विकास के मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संकल्प खास तौर पर जमीन और शराब के कारण कमजोर पड़ा है। अगर बिहार की सत्ता पर नीतीश कुमार की जगह कोई अन्य व्यक्ति विराजमान होता, तो यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं भी हो सकता था। फिर भी जनता की जो उम्मीदें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हैं। उसे देखते हुए जमीन और शराब के कारोबार के कारण कानून व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संकल्पों पर लग रहा बट्टा चिंताजनक है। यह कहने में गुरेज नहीं कि बिहार में शासन की बागडोर कमजोर हुई है। अधिकारियों की लचर कार्यशैली और आरामतलबी के कारण जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा। शुक्रवार को जिस तरह से मुजफ्फरपुर कलेक्ट्रेट में एक महिला ने एक जमीन के मामले को लेकर ही जिला अधिकारी के पोर्टिको के सामने आत्महत्या का प्रयास किया। यह दुखद है। निंदनीय है और यह साबित करता है कि राज्य में भू-माफिया किस तरह से मजबूत हो रहे हैं और उन्हें भ्रष्टाचार के कारण प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का संरक्षण मिल रहा है और दूसरी तरफ न्याय नहीं मिलने से निराश होकर आत्मघाती प्रयास के लिए गरीबों को विवश होना पड़ रहा है।
यह एक छोटी सी घटना है, लेकिन एक बड़ा संदेश दे रही है। इस घटना के बावजूद आज की तारीख में पक्ष हो या विपक्ष इस मामले को लेकर चुप है। किसी ने शासन- प्रशासन के कार्यकलापों को लेकर अपनी सजगता नहीं दिखाई है। तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता भी इतनी बड़ी घटना के बावजूद मौन हैं। उनकी चुप्पी कहीं न कहीं जमीन के व्यवसाय में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर संबंधों को उजागर करता है।
यही हालात पूरे बिहार में गैरकानूनी रूप से जारी शराब के कारोबार का है। इससे भी जुड़े लोगों का संबंध और जुड़ाव अब जाने-अनजाने राजनेताओं से देखा जा रहा है। यही नहीं जिस तरह से इनका अब राजनीति में भी बोलबाला बढ़ता जा रहा है और प्रशासन भी इससे अछूता नहीं है। इसके कारण पूरे बिहार के शासन और सत्ता पर बदनुमा दाग लगना शुरू हो गया है। इतने दिनों जिस तरह से बिहार में भूमि सर्वेक्षण के कार्यों में गति लाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के अपर सचिव दीपक कुमार सिंह से अपनी भावना को व्यक्त करते हुए वेदना व्यक्त की। इससे जाहिर है कि मुख्यमंत्री भू-माफिया के बढ़ते प्रभाव से अनजान नहीं है। वह इस सवाल पर अपने आसपास की शक्तियों से ही परेशान हैं। यह कहने की नहीं जरूरत कि वह राजनेता है या अधिकारी। फिर भी इनका प्रभाव जिस तरह से लगातार समाज से लेकर सरकार में बढ़ रहा है। वह एक सरकार के इकबाल को लेकर खतरे की घंटी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साफ-सुथरे चेहरा पर एक दाग का बड़ा खतरा है।
(लेखक न्यूज चैनल व वेब पोर्टल 'लोकवार्ता न्यूज' के संपादक हैं और दैनिक हिन्दुस्तान से लंबे समय तक जुड़े रहे हैं।)
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