- प्रभात कुमार
* बेगूसराय मक्का अनुसंधान केंद्र का मामला
हिंदू मुसलमान, गरीबों को 5 किलो राशन और मोदी जी का भाषण ही क्या बिहार की नियति है। बिहार के हिस्से बेरोजगारी, पलायन और 56 सांसदों के बावजूद 56 इंच के सीने के सामने नतमस्तक होना ही अब उसकी नियति है। बिहार की यह स्थिति तब ऐसी है जब उसकी बैसाखी पर ही इस देश की सरकार खड़ी है। वह सरकार गठबंधन की है। गठबंधन में एक बड़ा घटक जनता दल यूनाइटेड है। जो बिहार में सरकार का नेतृत्व कर रहा है और इसके नेता सीएम नीतीश कुमार हैं। भारतीय जनता पार्टी और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 की स्थिति में है और न 2019 की स्थिति में हैं। जिसे पूर्ण बहुमत प्राप्त था। 2024 में बनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की अपनी ताकत सिर्फ 240 सांसदों की लोकसभा में है।
बिहार के लिए यह वर्ष 2025 चुनावी वर्ष है। इसके बावजूद बेगूसराय से मक्का अनुसंधान के लिए स्थापित एक इकाई को शिवमोग्गा (कर्नाटक) स्थानांतरित करने का फैसला अब सामने आया है। कृषि मंत्री शिवराज चौहान के पत्र को लेकर सवाल मचा हुआ है। वैसे, स्थानीय सांसद और मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने ही सहकार के फैसले कुछ चुनौती देते हुए कहा है कि मेरे रहते यह कहीं नहीं जाएगा। मालूम हो की 4 म ई 1997 को बिहार के बेगूसराय जिले स्थित कुशमहौत में भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र ने मक्का अनुसंधान केंद्र की स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल किस शासनकाल में तत्कालीन कृषि मंत्री चतुरानंद मिश्र के पहल पर की गई थी
इस वर्ष बजट में बिहार को मिथिलांचल के विकास के लिए मखाना अनुसंधान केंद्र देने की घोषणा की गई है। इस घोषणा को जमीन पर उतरने में कितना समय लगेगा। यह नहीं मालूम लेकिन इंद्र कुमार गुजराल की सरकार और तत्कालीन कृषि मंत्री चतुरानंद मिश्र की देन को बिहार से बाहर ले जाने का फैसला मोदी सरकार ने जारी कर दिया है। मालूम हो कि बेगूसराय से हिंदू स्वाभिमान यात्रा निकालने वाले भारतीय जनता पार्टी के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह सांसद हैं। जो केंद्र में मंत्री भी हैं। जिनकी सरकार ने अभी देश में कई टेक्सटाइल पार्क की स्थापना का फैसला लिया है। दुर्भाग्य या सौभाग्य से बिहार इस सूची में नहीं है। दूसरी तरफ बेगूसराय से मक्का अनुसंधान केंद्र इकाई को हटाने का फैसला किया गया। यह बिहार के साथ न्याय है या अन्याय। इसका जवाब तो न्याय के साथ विकास के संकल्पों के साथ चलने का दावा करने वाले बिहार के यशस्वी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही दे सकते हैं।
यह वही बिहार है। जिसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले विशेष राज्य का दर्जा की मांग करते थे। अब विशेष पैकेज की मांग करते हैं। स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने ही बिहार का विभाजन किया था और बिहार के हिस्से सिर्फ आलू और बालू को छोड़ दिया था। उस समय बिहार में लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व की राष्ट्रीय जनता दल सरकार थी। मालूम हो कि लालू प्रसाद यादव ने बिहार का बंटवारा अपनी लाश के शर्त पर कराने की घोषणा की थी। उस समय भी एनडीए की सरकार थी और वर्तमान में भी एनडीए की सरकार है।
बिहार के बंटवारे के बाद स्टील सिटी जमशेदपुर, बोकारो और औद्योगिक शहर रांची के साथ-साथ बिहार से कल-कारखाने ही नहीं खान और खनिज भी ले लिए गए। भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड में वनांचल का सपना बचा था। लिहाजा यह क्षेत्र उसके स्ट्रांग होल्ड का था। इसके कारण छोटे राज्यों की हिमायत के बहाने भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड पर अपना कब्जा जमाया। यह बात अलग है कि आज का दांव उसके पक्ष में नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बिहार और आंध्र प्रदेश के बैसाखियों पर खड़ी है। इस बैसाखी का सबसे मजबूत हिस्सा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड है। जिसके लोकसभा में कुल 12 सांसद है। इस सरकार को बिहारी फर्स्ट और बिहार फर्स्ट का जुमला चुनाव में जमकर उछलने वाले केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के भी 5 सांसद हैं। चिराग भी मोदी सरकार के घटक हैं। ऐसे ही एक घटक हम सेकुलर पार्टी के संस्थापक केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी भी हैं।जो अकेला सांसद होने के बावजूद वर्तमान में मोदी सरकार के कैबिनेट के मंत्री हैं। बिहार से एनडीए के कुल 30 सांसद हैं। फिर भी बिहार के बेगूसराय से मक्का अनुसंधान केंद्र को कर्नाटक भेजे जाने के सवाल पर चुप्पी साधे हुए हैं। केंद्र में गिरिराज सिंह के साथ-साथ पूर्व में बेगूसराय से सांसद रह चुके जनता दल यूनाइटेड के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी वर्तमान में मोदी सरकार में मंत्री हैं। वह भी चुप है। उधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो जैसे केंद्र की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मौन व्रत ही रख लिया है। उनकी जुबान पर सिर्फ एक ही बात है कि अब गलती नहीं करेंगे। इधर-उधर नहीं जाएंगे। न जाने इस वाक्य के क्या मायने हैं और सीएम नीतीश कुमार का दरअसल क्या इरादा है। वैसे, बाहरी तौर पर जो हालात दिख रही है। वह नतमस्तक जैसा ही है। जनता दल यूनाइटेड में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद पार्टी में दूसरे नंबर की कुर्सी पर विराजमान संजय झा है जो राज्यसभा के सदस्य और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं। उनके बारे में अब बस इतना ही सोचा और कहा जा सकता है कि उनकी दुनिया मिथिलांचल तक ही सीमित है और वह भाजपा के ज्यादा और जनता दल यूनाइटेड के प्रति कम निष्ठावान दिख रहे हैं। उधर, सीएम नीतीश कुमार के सौर मंडल में परिक्रमा करने वाले जो भी मंत्री और विधायक हैं। वह भी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बोलने की ताकत में नहीं हैं।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वर्तमान सीएम नीतीश कुमार जब कृषि मंत्री बने थे तब उन्होंने मुजफ्फरपुर में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र की स्थापना कराई थी। उनके बाद ही स्वर्गीय अजीत सिंह के केंद्रीय कृषि मंत्री बनते ही देहरादून में लीची अनुसंधान केंद्र का एक बड़ा हिस्सा स्थापित कर दिया गया और इस राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के साथ फूड पार्क की स्थापना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। जो आज भी यथावत है। यही नहीं नरेंद्र मोदी जब पहली बार 2014 में प्रधानमंत्री बने और उनकी सरकार में मोतिहारी से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर राधा मोहन सिंह जीते और सरकार में कृषि मंत्री बने। तब मोतिहारी में एक क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र की स्थापना कर केंद्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर को मजबूत करने की जगह कमजोर कर दिया।
मखाना अनुसंधान केंद्र की स्थापना का फैसला अटल सरकार में ही लिया गया था। जिसकी चर्चा इस बार बजट में हुई है। अटल जी के सपने को वर्तमान मोदी सरकार में भी 10 सालों तक ठंडा बस्ते में ही रखा गया। आगे भी क्या होगा। यह तो समय ही बता सकेगा। बिहार के साथ नाइंसाफी की एक लंबी फेहरिस्त है। कुछ दिन पहले ही जमालपुर रेलवे कारखाने में इसलिए रेलवे इंजीनियर की पढ़ाई को बंद कर दिया गया क्योंकि इसके लिए गुजरात के अहमदाबाद में एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर दी गई है। इस सवाल को लेकर भी जमालपुर से बिहार सरकार में पूर्व मंत्री रहे शैलेश कुमार इस मामले को लेकर कभी एक पत्र तक भारत सरकार को नहीं लिखा। वर्तमान में यह क्षेत्र मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के अधीन है। इसके बावजूद मोदी सरकार में मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह चू तक नहीं की। जमालपुर रेलवे कारखाने का विकास और इसके विस्तार की बात तो दूर रही। एक कारण है कि लालू प्रसाद यादव सबका साथ और सबका विकास का दावा करने वाली मोदी सरकार के खिलाफ चुटकी लेते हुए कहते है कि उनके सिवा किसी एनडीए सरकार के रेल मंत्री ने एक कांटी का भी कारखाना स्थापित नहीं किया। मालूम हो कि जब रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव थे, तब गोपालगंज में रेल पहिया कारखान की स्थापना हुई थी।
वैसे मोदी सरकार के इतिहास के बखान करने वाले नेता जॉर्ज फर्नांडिस को भूल जाते हैं। जिनके बदौलत मुजफ्फरपुर में कांटी थर्मल पावर स्टेशन की स्थापना और नालंदा संसदीय क्षेत्र में आयुध कारखाना और बिजली घर की स्थापना हुई।
यही नहीं जब देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी थी और हाजीपुर से रिकॉर्ड वोट से रामविलास पासवान जनता पार्टी के टिकट पर जीते थे, तब बेंगलुरु और हाजीपुर में आईटी सिटी की स्थापना की बात हुई थी लेकर कर्नाटक के बेंगलुरु में स्थापित आईटी सिटी और पार्क के कारण जहां पूरा कर्नाटक का नक्शा बदल गया। बेंगलुरु के आईटी पार्क और शहर में सबसे ज्यादा काम करने वाली बिहारी इंजीनियर के बिहार में हाजीपुर सिर्फ घोषणा तक सीमित रहा। हकीकत और फसाना का सबसे बड़ा उदाहरण बिहार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा सबका साथ और सबका विकास का हो लेकिन गुजरात आगे आने वाले दिनों में महाराष्ट्र से आगे निकल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। बिहारी के हिस्से बेरोजगारी और पलायन कब तक रहेगा। इस यक्ष प्रश्न का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना चाहिए क्योंकि वह पूरी दुनिया में विकसित भारत का सपना बेच रहे हैं। दूसरी तरफ बिहार इस भारत का एक हिस्सा है। जहां की प्रति व्यक्ति आय अब तक लाख तक में नहीं पहुंची। 66-67 हजार है। विकास पुरुष का दावा करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो यह कहते हैं कि 2005 के पहले बिहार में क्या था? सच में बिहार को सड़क, बिजली, पानी तक का भी संकट था। जहां आज भी शिक्षा और स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है। ऐसी स्थिति में राजनीति अगर व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति का एक मध्य तक सीमित हो गई है, इस प्रदेश के लिए इससे बड़ी चिंता क्या हो सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को यह बताना चाहिए कि क्या बिहार का कल्याण हिंदू मुसलमान और होली के मौके पर नफ़रत की बोल और हिंदू स्वाभिमान यात्रा से संभव है। बिहार की आमदनी प्रयागराज के संगम पर अमृत कुंभ स्नान से संभव हो सकेगा अथवा रामलला जिनकी अब लंबे संघर्ष और यत्न के बाद अयोध्या में हो चुकी है। उनके ही आशीर्वाद से बिहार का कायाकल्प हो जाएगा।
(लेखक प्रभात कुमार 'लोकवार्ता न्यूज' के संपादक हैं और दैनिक हिन्दुस्तान के साथ लंबे समय तक रिपोर्टिंग की है।)
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