- प्रभात कुमार
बिहार में जनता दल यूनाइटेड की सियासत बदल रही है। एक बड़े नौकरशाह रहे मनीष वर्मा के जदयू में आने के साथ राजनीति में हुई उनकी एंट्री इसका संकेत दे रही है। कई सवालों को लेकर बिहार की मीडिया में कयासबाजी जारी है। बड़ी चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना उत्तराधिकारी मिल गया है।
इस तरह की चर्चा पहले भी होती रही है। बिहार के चर्चित पत्रकार कन्हैया भेलारी ने संभावना जताते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर एक पुस्तक लिखने वाले लेखक बिहार के उत्तराधिकारी बनेंगे। मालूम हो कि इनके परिवार में दो व्यक्तियों को पहले से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से सत्ता सुख प्राप्त है। इसमें वह खुद और दूसरे उनके एक भाई हैं। फिर इस भविष्यवाणी पर विराम लगा तो मुख्यमंत्री के पुत्र निशांत कुमार की चर्चा जोर-जोर से शुरू हो गई। फिर कई नाम उछले। अब चर्चा मनीष वर्मा पर फिलहाल केंद्रित है।
‘नीतीश के शासन में ही लोकशाही’
मनीष वर्मा जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद लगातार पत्रकारों बता रहे हैं कि बिहार में कोई राजतंत्र नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं और लोकशाही है। ऐसे में उत्तराधिकार का सवाल उठता कहां से है। जब नीतीश कुमार बिहार की गाड़ी पर विराजमान हैं और एनडीए उनके नेतृत्व में 2025 का चुनाव लड़ने की बात कर रही है। ऐसे में कोई अस्वस्थता और कोई मजबूरी नहीं है कि उनके विकल्प को लेकर चर्चा हो।
गहमागहमी में नहीं दिखे बड़े चेहरे
महत्वपूर्ण बात यह है कि मनीष वर्मा ने जब से जनता दल यूनाइटेड की प्राथमिक सदस्यता को स्वीकार किया है, तब से इस पार्टी में गहमागहमी कुछ ज्यादा ही बनी हुई है। पार्टी के ग्रास रूट वर्करों और पुराने नेताओं में भारी उत्साह है। दूसरे शब्दों में जनता दल यूनाइटेड के कोर वोटरों में आशा का संचार हुआ। उनकी भारी उपस्थिति शनिवार को पटना हवाई अड्डा से लेकर मनीष वर्मा के आवास और जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश कार्यालय तक में देखी गई। वहीं इस मौके पर जनता दल यूनाइटेड के केंद्रीय मंत्री और नीतीश सरकार के मंत्री तक नहीं दिखे। यहां तक कि ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार तक नजर नहीं आए।
इस सब की बड़ी चर्चा रही। यही नहीं, विधायक और विधान पार्षद भी नहीं के बराबर दिखे। जनता दल यूनाइटेड के कार्यालय में मौजूद पार्टी के कुछ बड़े नेताओं का भी चेहरा बेरौनक दिखा। दूसरी तरफ हवाई अड्डा से लेकर पार्टी कार्यालय तक जिस तरह से बड़ी संख्या में लोगों के बीच जोश और उत्साह देखा गया, वह लंबे अरसे बाद नजर आया।
वैसे देखा जाये तो मनीष वर्मा को मिली जवाबदेही लोकसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड को मिली सफलता के अनुपात में बहुत छोटी है। पार्टी में ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि मनीष वर्मा ने मुख्यमंत्री का एडिशनल एडवाइजर होने के बावजूद चुनाव में जदयू के उम्मीदवारों के लिए पर्दे के पीछे से बहुत बेहतरीन तरीके से काम किया। इससे पार्टी में कुछ खास नेताओं का चेहरा लटक गया है। वह अचानक असहज दिख रहे हैं। इसमें कई भूंजा पार्टी वाले लोग हैं। प्रदेश के कई आला पदाधिकारी हैं। संगठन के कई नेता हैं। अभी जनता दल यूनाइटेड में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। सिर्फ संकेत का अनुमान है। फिर भी कुछ लोग पसीने से तर हो रहे हैं।
मन-मिजाज की थाह पाना आसान नहीं
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मिजाज राजनीति में कुछ अलग ही रहा है। उनके फैसले और कार्य करने की शैली भी लग रही है। लोगों का कहना है कि उनके बारे में कोई अनुमान आसान नहीं है। उनके मन में क्या चल रहा है, इसकी जानकारी एक हाथ को ही मालूम होती है। दूसरा हाथ इसका अनुमान भी नहीं लगा पाता। मनीष वर्मा को लेकर चर्चा 2019 से ही चल रही थी। 2018 में रिटायरमेंट के बाद से वह चर्चा में थे। अब जाकर कुछ मामला सामने आया है। फिर भी आगे क्या होगा। इसका अनुमान बहुत कठिन है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2012 में ओडिशा से बतौर प्रशासनिक अधिकारी बिहार आने वाले मनीष वर्मा 12 वर्षों में मुख्यमंत्री को कितना समझ सके हैं, यह महत्वपूर्ण होगा।
आडंबर और प्रदर्शन से बचना होगा
मैं शनिवार को पटना में था और मनीष वर्मा का भव्य स्वागत पटना हवाई अड्डे से लेकर पार्टी कार्यालय तक देख रहा था लेकिन इसे देखकर मुझे भय भी हो रहा था। इसका कारण यह था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस तरह के आडंबर और प्रदर्शन से सख्त नफरत है। मैं भरोसे के साथ नहीं कह सकता कि मनीष वर्मा के निकट या आसपास रहने वाले कुछ खास इस बात को जानते हैं या नहीं। लेकिन मुझे इतना मालूम है कि रामचंद्र प्रसाद सिंह जब मंत्री बने और राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, तब उन्होंने इस बात को नोटिस किया था। प्रदर्शनबाजी से वह नाराज हुए थे। कई मौके पर मैंने बातचीत के क्रम में उनके स्वभाव को परखा है। वह काम को पसंद करते हैं, प्रदर्शन को नहीं।
विरोधी रहते हैं मौके की ताक में
राजधानी पटना की गलियों और सड़कों पर कई ऐसे जनता दल यूनाइटेड के तथाकथित नेता और लोग मिल जाएंगे, जो मनीष वर्मा जैसे नेताओं को शासन और सत्ता में शक्ति मिलते ही गणेश परिक्रमा में लग जाते हैं और वह अंततः नुकसानदेह साबित होता है। विरोधी इन खबरों को मुख्यमंत्री के कानों तक पहुंचा देते हैं और देखते-देखते उनका नजरिया बदल जाता है।
बड़ा बेचैन है एक तबकाबिहार में जो बदलाव हो रहे हैं, उससे बड़े तबके में बेचैनी है। जो मीडिया के माध्यम से लगातार सामने आ रहा है। ऐसे में मनीष वर्मा को पार्टी के भीतर अंगारों पर चलने की चुनौती है। अगर वह इन चुनौतियों से से निपट पाते हैं और मुख्यमंत्री के मापदंड पर खरे उतरते हैं, तब निश्चित तौर पर बिहार में जनता दल यूनाइटेड की बड़ी ताकत के साथ वापसी की संभावना दिखती है। अन्यथा घर के भीतर का ही संकट बड़ा दिखता है।

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